गैस पेपर--शब्दचित्र--धीमा जहर--ये कैसा डर--(ब्लाग चर्चा)------ललित शर्मा

सर्किट बहुत दिन से बिना बताए गायब  है--मुन्ना भाई उसको ढुंढते हुए हमारे तक पहुंच गए--कहने लगे सर्किट कहीं दिखे तो बताना और आज की चर्चा आप कर दिजिए, तो हमने भी उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। जो समय पर काम आवे वही सच्चा मित्र होता है। तुलसी दास जी ने भी कहा है धीरज धरम मीत अरु नारि-आपत काल बिचारिए चारि-- इसी भाव को लेकर मै ललित शर्मा आपको ले चलता हुँ आज की चर्चा पर..............
आज की चर्चा का आगाज करते हैं मिसफ़िट से गिरीश बिल्लौरे जी जबलपुरिया की पोस्ट से--- उनका कहना है कि कुपोषण कोई बिमारी नही, बिमारी का भेजा गया नि्मंत्रण है--- जी हाँ एक अखबार में प्रकाशित  समाचार में  शिशु उत्तर जीविता के मसले पर सरकार द्वारा उत्तरदायित्व पालकों का नियत करना अखबार की नज़र में गलत है. इस सत्य को   अखबार चाहे जिस अंदाज़ में पेश करे  यह उनके संवाद-प्रेषक की निजी समझ है तथा यह उनका अधिकार है......! .  किन्तु यह सही है  कि अधिकाँश भारतीय ग्रामीणजन/मलिन-बस्तियों के निवासी  लोग महिलाओं के प्रजनन पूर्व  स्वास्थ्य की देखभाल और बाल पोषण के मामलों में अधिकतर उपेक्षा का भाव रखते हैं . शायद लोग इस मुगालते में हैं कि सरकार उनके बच्चे की देखभाल के लिए  एक एक हाउस कीपर भी दे ...?
चलते हैं अगली पोस्ट पर--आज ताऊ डॉट इन पर पढिए-- एक कविता रिश्ते----पता नही आजकल रिश्ते इतने नाजुक क्यों होगये हैं? और आभासी रिश्ते तो वाकई पल पल इधर उधर बिखरते नजर आते हैं. कभी कभी तो इस पत्थर की फ़र्श पर लिखे शब्दों की तरह नजर आने लगते हैं. अक्सर सोचता हूं कि क्या यही रिश्ते हैं?
काव्य मंजुषा पर अदा जी कह रही हैं--इतना तन्हा कितना तन्हा होगा अब और इस दिल का क्या होगा,इतना तन्हाँ है, कितना तन्हाँ होगा,सारे के सारे अक्स मुझे फ़रेब लगे,कोई चेहरा तो कहीं सच्चा होगा,मुझे सच का आईना दिखाने वाले,शायद तेरी आँखों का धोखा होगा, ---गुनगुनाती धुप पर अल्पना वर्मा जी से सुनिए-- वो इश्क जो हमसे रुठ गया
श्री तन सिंह जी के ब्लाग पे पढिए-- चेतक की समाधि से 3---" एक दिन संवत १६३३ के जेष्ट सुदी २ , तारीख ३० मई १५७६ बुधवार के प्रभात काल में उनके शिविर में मंद स्वर में कुछ मंत्रणा सी हो रही थी | एक स्त्री -कंठ याचना भरे शब्दों में अनुनय कर रही थी - " मैं नाचना चाहती हूँ , जी भर कर नाचना चाहती हूँ | बहुत समय बीत गया है , एक बार तो कम से कम तुम भी मुझे नचाओ |" उत्तर में उन्होंने कहा - " मैं ताल दूंगा और तुम नाचना | " मुझे उन पर कभी संशय नहीं हुआ , किन्तु उपरोक्त मंत्रणा के सम्बन्ध में जिज्ञासा बनी रही | प्रभात काल में वे बाहर आये और मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा - " मैंने रणचंडी को नाचने का वायदा किया है - कैसा 'क साथ दोगे ?" और मुझे समझ आ गया , कि उगने वाला सूर्य क्या देखेगा |
अवधिया जी बता रहे हैं धान के देश से टॉप ब्लागर का रहस्य-वो क्या है टिप्पण्यानन्द जी, हमारी सफलता के पीछे कई बातें हैं। पहली बात तो यह है कि आपको पोस्ट निकालना आना चाहिये। पोस्ट किसी भी चीज से निकाला जा सकता है। जैसे नदी में तरबूज-खरबूज आदि की खेती हो रही है तो उस पर पोस्ट निकाल लो। आपके घर के पास कुतिया ने पिल्ले दिये हैं तो झटपट उन पिल्लों के फोटो ले लीजिये और एक पोस्ट निकाल कर चेप दीजिये उन फोटुओं को। यात्रा के दौरान आपका सूटकेस चोरी हो गया तो उससे भी पोस्ट निकाला जा सकता है। आपको रास्ते में कोई विक्षिप्त दिख गया तो उससे एक पोस्ट निकाल लीजिये। जब लोगों को किसी भी ग्राफिक्स में अल्लाह नजर आ जाता है, सिगरेट के धुएँ में चाँद-सितारे आदि दिख जाते हैं तो किसी भी चीज से पोस्ट क्यों नहीं निकाला जा सकता? हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि पोस्ट कहीं से भी निकल सकता है।
शब्दचित्र कलाकृति है--उड़न तश्तरी पर बता रहे हैं समीर लाल जी--कहते हैं शब्दचित्र कलाकृति हैं, हृदय में उठते भावों के रंग से कलम की कूचि से कागज पर चित्रित.कवि, शब्दों को चुनता है, सजाता है, संवारता है और उन्हें एक अनुशासन देता है कि शब्द अपने वही मायने संप्रषित करें जिनकी उनसे अपेक्षा है.हर शब्द नपा तुला, रचना को संतुलित रखता और अन्य शब्दों के साथ मिल कर, अपनी गरिमा को बरकरार रखते हुए, पूरी रचना को एक आकृति प्रदान करता. काव्य सृजन एक कला है और कवि एक कलाकार.
शब्दों का सफ़र चल रहा है बता रहे हैं अजीत वडनेरकर--तुफ़ाने-हमदम और बंवड़ा बंवड़ी--- तुफान हिन्दी का आम शब्द है। तेज हवा या चक्रवात के लिए इसका इस्तेमाल होता है। पारिभाषिक रूप में समुद्री सतह पर तेज बारिश के साथ चलनेवाले तेज अंधड़ को तूफान कहते हैं मगर हिन्दी में इस शब्द का साधारणीकरण और सरलीकरण दोनो हुआ है। तूफान शब्द का इस्तेमाल अब जमीन की सतह से उठने वाली धूल भरी आंधी के लिए भी होता है। तेज हवा और वर्षा का वेगवान स्वरूप सब कुछ तहस नहस कर देता है इसलिए मुहावरे के रूप में तूफान शब्द का अर्थ विपत्ति, आफ़त, गुलगपाड़ा, बखेड़ा, झगड़ा, विप्लव आदि भी है। शोर-गुल, हल्ला-गुल्ला के लिए भी तूफान शब्द का इस्तेमाल होता है और झूठे दोषारोपण से मचे बवाल को भी तूफान कहा जाता है।
अमीर धरती गरीब लोग पर अनिल पुसदकर जी बचपन के स्कुल की दिनों की याद कर रहे हैं, सीजन परीक्षा का, गैस पेपर और खुबसूरत यादें----एक दिन अचानक़ एक स्कूटर आकर रुका और उसपर सवार दो युवतियों मे से एक ने पूछा कि दिलीप जी से मिलना है?जो स्कूटर चला रही थी वो तो बेहद साधारण थी लेकिन पीछे जो बैठी थी वो बला कि खूबसुरत थी।उस सूखे-तपते रेगिस्तान मे दोनो का आ जाना अमृत की बूंदो के समान सुखदायी था।दोनो अचानक़ सामने आ गई थी इसलिये प्लानिंग करके कुछ किये जाने की स्थिति मे ह लोग नही थे और इससे पहले कोई कुछ कहता मैने उन्हे रूखा सा जवाब दे दिया दिलीप नही आया है?कब आयेगा के सवाल का जवाब और भी रूखा था,पता नही!
मा पलायनम! पर डॉ मनोज मिश्र जी बता रहे है---राजा रामचंद्र जी और उनके पाँच हजार सैनिक--- पिछले दिनों मैं अयोध्या में था और अपने प्रवास की बात कर रहा था .श्री राम जन्मभूमि परिसर में सुरक्षा के लिए लगभग पांच हजार जवान लगे हैं.श्री राम लला के दर्शन के दौरान मैंने अपनें साथ गये एक पत्रकार मित्र से कहा कि वाह ,क्या चाक-चौबंद व्यवस्था है,वाकई यहाँ तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता.मेरे पत्रकार मित्र नें कहा कि कि अब राजा केलिए इतने सेवक-सैनिक तो रहेंगे ही.उनके कहने का अंदाज़ ऐसा था कि मुझे हंसी आ गयी .मैंने उनसे कहा कि यह आप क्या कह रहे हैं .उन्होंने कहा मैं सही कह रहा हूँ यहाँ सब के सब श्री राम लला की सेवा में ही तो है,अब राजा हैं तो सेवक होने चाहिए न.बिना सेवक के कैसा राजा।
ममता टीवी पर ममता जी पुछ रही हैं--ये कैसा डर मु्लायम सिंह को?-- शायद आप लोगों ने भी पढ़ा होगा की समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह को ये डर है की महिला आरक्षण देश को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है । यही नहीं मुलायम सिंह का तो ये तक सोचना है की महिला आरक्षण के कुछ साल बाद संसद सिर्फ महिला सांसदों की होगी ।अभी मुलायम सिंह को काफी चिंता हो रही है की ३३ प्रतिशत आरक्षण के बाद संसद मे महिलाओं की संख्या हर चुनाव के बाद बढती जायेगी। और तो और उनका ये तक सोचना है कि देश का भविष्य क्या होगा जब देश inexperienced महिलाओं के हाथ मे होगा ।और अनुभव तो तभी होगा ना जब वो संसद तक पहुंचेंगी
खुशदीप सहगल कह रहे है-- दम ले ले घड़ी भर ये आराम कहां पाएगा---हम देर से उठते हैं...अपने बच्चों के साथ खेलते हैं...पत्नियों के साथ बढ़िया खाना बना कर खाते हैं, शाम को हम दोस्त-यार मिलते हैं...साथ जाम टकराते हैं...गिटार बजाते हैं...गाने गाते हैं...मौज उड़ाते हैं..फिर थक कर सो जाते हैं...या यूं कहें ज़िंदगी का पूरा आनंद लेते हैं... मैं हावर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए हूं...मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं...मेरी सलाह है कि तुम मछलियां पकड़ने में ज़्यादा वक्त लगाया करो...और जितनी ज़्यादा मछलियां पकड़ोगे, उन्हे बेचकर ज़्यादा पैसे कमा सकते हो...फिर उसी पैसे को बचाकर  बड़ी नौका खरीद सकते हो...
मिलिए प्रख्यात चित्रकार श्री डीडी सोनी से एक साक्षात्कार मे ललित डॉट कॉम पर ---- मित्रों आज मै आपका परिचय भारत के प्रसिद्ध चित्रकार एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व डॉ.डी.डी. सोनी जी करवा रहा हुँ। इन्होने चित्रकला के क्षेत्र मे नए सोपान गढे हैं तथा अपनी जीवन यात्रा मे काफ़ी संघंर्ष किया है। परम्परागत रुप से की जाने वाली चित्रकारी से लेकर आधुनिक चित्रकला के क्षेत्र मे इन्होने हाथ आजमाया तथा सफ़लता भी मि्ली। आज इनकी पेंटिग लाखों में बिकती है। इनसे बहुत सारे नए चित्रकार चित्रकला की बारीकियाँ सीखने आते हैं, उन्हे सहज भाव से समझाते हैं। इन्होंने बहुत सारी विधाओं पर काम किया है जैसे लैंड स्केप, पोट्रेट, लाईव, मार्डन पेंटिग,मिनिएचर, ड्राईंग प्रोसेस, पैचवर्क, नाईफ़ पैंटिग इत्यादि।
किशोर अजवानी बता रहे हैं श्री श्री रविंशंकर से मिलना है --एक्चुअली तो लेट हो गया अब लेकिन फिर भी अगर आपके ज़ेहन में श्री श्री रविशंकर के लिए कोई सवाल हो तो सुबह तक मुझे बता दें, कल दोपहर बारह बजे इंटरव्यू है उनका लाइव। हो सका तो आपका सवाल ज़रूर लूंगा। मतलब वो विविध भारती की तरह तो न ले पाऊंगा कि फ़लां फ़लां का फ़लां जगह से ये सवाल है। अजय झा जी- ले आए हैं आज का मुद्दा--गुटका पान मसाला एक धीमा जहर--आज से एक दशक पहले तक आम लोगों ने यदि किसी पान मसाले के बारे में देखा सुना था या कि उपयोग किया करते थे तो वो शायद पान पराग और रजनीगंधा हुआ करता था । उसकी कीमत उन दिनों भी आम पान मसाले या सुपाडी से कुछ ज्यादा हुआ करती थी ।
आज अनिता कुमार जी का जन्म दिन है--उन्हे बधाई देने के लिए यहां जाएं

अब चर्चा को देते हैं विराम-आपको ललित शर्मा का राम-राम----मिलते हैं ब्रेक के बाद

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बकवास मत कर सार्थक लिख ताजगी और बदलाव के लिये : चर्चाकार (ललित शर्मा)


आज मुन्ना भाई ने सर्किट को भेज दिया और कहा कि ललित शर्मा को कह दो एक चर्चा हमारे ब्लाग पर भी होनी चाहिए, बताईये अब मरता क्या ना करता चलो रे भाई मुन्ना भाई का आदेश है मनाना ही पड़ेगा, पानी में रहके .......ठीक नहीं है, एक समाचार बता रहा हुई कि रायपुर कलेक्ट्रेट के कुत्तों से निगम कर्मचारी भयभीत हैं और उन्होंने कुत्तों से सेटिंग कर ली है. इसका पता तब चला मेयर मेडम ने उन्हें पकड़ने के लिए कहा. सख्त निर्देश पर भी कुत्ते नहीं पकडे गए. मेडम के असिस्टेंट को कुत्ते ने काट डाला तब मेडम ने कहा कि आस पास में कुत्ते नहीं अब नहीं दिखेंगे. अब जब भी मेडम के असिस्टेंट कलेक्ट्रेट जाते हैं तो उनको मुंह चिढाते हुए कुत्ते अठखेलियाँ करते है और लोग  पूछते हैं "क्या हुआ कुत्तों का? ये तो था एक समाचार अब मैं ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज की चर्चा पर............
आज गिरिजेश राव जी फिर स्कुल जा रहे हैं और सब सहपाठियों से निवेदन कर रहे हैं कि स्कूल चले हम.भैया कालेज में कोई पढाई थोड़ी ना होती है पढ़ना है तो स्कुल जाना ही पड़ेगा और जो मजा स्कुल की पढाई में है वो कालेज की पढाई में कहाँ? हम सोच रहे हैं कि दो बार पांचवी पढ़ लेंगे तो १० क्लास की पढाई तो हो ही जाएगी अब किसी के पूछने पर नान मैट्रिक की डिग्री नहीं बतानी पढेगी सीधा ही मेट्रिक बताएँगे. इस लिए हम भी चलते हैं अब स्कुल. गिरिजेश भाई स्कुल पहुँच कर क्या कह रहे है देखिये."मैडम को सफेद अच्छा लगता है।"
अब आगे चलते हैं तो कुलवंत हैप्पी गुमशुदा की तलाश में निकल पड़े हैं लेकिन जिस चीज की तलाश में निकले हैं वह चीज बिना वैराग के नहीं मिलती चलो किसी दिन इस मायावी दुनिया से थक जायेंगे तो वैराग आ ही जाएगा और  अभीष्ट की प्राप्ति हो जाएगी, अब एक तरफ वैराग है तो दूसरी तरफ फागुनी विरह प्रकट हो रहा है.रानी विशाल जी फरमा रही है कि ना आये विरह की रैन.. तुम बिन सब सुख दुःख भये, ना पाए मन कहीं चैनप्राण जाए तो जाए पर, ना आए विरह की रैन, ये विरह ही ऐसी चीज है जो बहुत दुःख देती है
चलते हैं ३६ गढ़ की ओर जहाँ से महुए की भीनी भीनी,सोंधी-सोंधी खुशबु आ रही है और  शिल्पकार कह रहे हैं गजब कहर बरपा है महुए के मद का भाई.....यही समय जब महुआ के रस भरे फ़ूल जब धरती पर गिरते हैं तो इनकी खुशबु से पूरा वातावरण महक जाता है एक मादकता छा जाती है. फागुन आने का सन्देश सब तक पहुँच जाता है, हम भी महुआ के रस में तर हो गए हैं. आप भी कुछ तर होइए और फागुन का मजा लीजिये होरियारों के संग. इधर भी कुछ फागुन का ही माहौल बना हुया है,अब क्या कहिये काजल भाई पूछ रहे हैं कि सच बताना यह बस आपने कहीं देखी है. काजल भाई दिन भर हम मिथ्या व्यापर करते हैं और झूठ से फुर्सत मिलेगी तो कसम से सच भी कह देंगे आपकी बात जरुर रखेंगे काटेंगे नहीं.इतना वादा रहा हमारा.
ताऊ ने फिर पूछी है एक पहेली और उसका हिंट भी दे दिया है अब राम ही जाने कौन बनेगा विजता? इधर सतीश सक्सेना जी ताऊ की पोल खोलने में लगे हैं उनके सारे प्रोडक्ट को नकली बता रहे हैं लेकिन  मुझे समझ में नहीं आया कि जब सारे प्रोडक्ट नकली हैं तो क्रीम से समीर लाल कैसे गोरे हो गये? वैसे क्रीम तो चमत्कारी लगती है.बाकी सतीश जी बता रहे हैं.आप भी लीजिए आनंद.समीर लाल गोरे होए हैं और अवधिया जी लाल हो गए हैं. अब ये कैसे हो गया कौन सी क्रीम लगायी, क्रीम नहीं लगाई ये तो देखने से ही लाल हो गये, लाली मेरे लाल की जीत देखो उत लाल, लाली देखन मैं गई और मै भी हो गयी लाल, आज इन पर लालित्य छा गया है होली का,बहुत लाल-बाल हो गये हैं.
दिल्ली में चलना अब दिल्लगी नहीं रह गया है, इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता, अविनाश जी पहले पप्पू के साथ गाड़ियों की बहुत सवारी करते थे.लेकिन अब गर्दी देख के उनका भी मन सायकिल खरीदने की बजाय रिक्शा खरीदने का हो गया है. क्योंकि सायकिल पे तो दो लोग ही मुस्किल से बैठ सकते हैं और रिक्शे पर कई ओवरलोड होने से चालान का भी खतरा नहीं है, इधर एक खतरा टला नहीं की अनिल पांडे जी एक खतरा उठा रहे हैं और एक व्यथा बतला रहे हैं,अंतर सोहिल जी ने तो नामरूप अंतर जगा दिया, मुझे तो इनका नाम सामने आते ही अपूर्व आनंदाभुति होती है  जैसे भीषण गर्मी में किसी नीम के ठन्डे पेड की छाया, आज इन्होने चेताया  है कि बकवास मत कर, सार्थक लिख, अब आप सोच लीजिये क्या करना है?
परिकल्पना पर फगुनाहट की गुनगुनाहट है. आज अनुराग शर्मा जी की कविता प्रकाशित की गयी है. बहुत ही सुन्दर कविता है, बोल सियापति राजा रामचंद्र की जय, पवन सूत हनुमान की जय. अब हनुमान जी लंका में अशोक वाटिका में पहुँच गए हैं. लंका का दहन होगा. अवधिया जी की रामायण का प्रसंग है. संगीता पूरी जी ने अंधविश्वास के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और डटी हुयी हैं एक सैनिक की तरह मोर्चा लेने के लिए, रेखा श्रीवास्तव जी नारी का संबल बढा रही हैं और उन्हें कह रही है कि निर्बल मत बनो कर्म करो कुछ ऐसे कि सबल हो जाओ,
अरे भैया ये फकीरा भी कभी कभी गजब के रोल करते है. होली आई नहीं है और हाथ में दारू की बोतल लेकर शराबी का रोल कर रहे है. इधर परीक्षा सर पर आई है और  गोदियाल जी  वाह जी खुशवंत सिंग जी कह कर उन्हें शाबासी दे रहे हैं. मनोज जी बहुत ही मेहनत करते हैं. जब से इन्होने होली के कुछ चिट्ठों की चर्चा की है तब से ये भी होलिया गए है और कह रहे है होली आई रे
आज उडन तश्तरी रेस्ट पर है तो अदा जी उड़ान  पर हैं काव्य मञ्जूषा पर बहुत ही सुन्दर भाव भरी कविता है तथा ऊ छाता वाला फोटू भी बहुत सुन्दर लगा है कविता के साथ. इधर अजय झा कह रहे हैं तेरे बिना जी नहीं लगता, झा जी अगर हमारे लिए कह रहे हैं तो जल्दी ही मिलन होगा जब हिया मिलेगा तो जीया भी लगेगा.  सुबीर संवाद सेवा पे पढ़िए नजीर अकबराबादी का पूरा गीत "जब फागुनी रंग झमकते हों" फागुन का आनंद लीजिये डॉ.मनोज  मिश्र जी भी आज हमारे साथ महुआ के फेरा में पड़ गए हम तो महुआ-महुआ हुए, उनका भी मन होने लगा महुआ-महुआ, महुवे की खुशबु ही कुछ ऐसी है कि दीवाना बना देती है.
भैया अब इतना पढ़ने के बाद खुशदीप भाई मुस्कुराने कह रहे हैं जबकि हम चाहते हैं कि कविता का इनाम मिल जाये तो मुस्कुराएँ, क्योंकि जब से अनारकली कहीं चली गयी है हम मुस्कुराना ही भूल गए हैं. ताजगी और बदलाव के लिए  अब मै खुद को ही प्यार करने लगा, और चाहता हूँ कि इस थकान भरे दिन के बाद कोई थपकियाँ देकर सुला दे, प्रकृति का क्रूर प्रहार सही बहुत याद आओगे निर्मल तुम. आज फिर मेहनत से चिट्ठों के मोती पिरोकर एक माला बनायीं है. पसंद आये तो मुक्त कंठ से आशीर्वाद दीजिएगा. अब दे रहा हूँ इस चर्चा को विराम-सभी भाई-बहनों को ललित शर्मा का राम-राम........................!
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गधे ब्लागिंग क्युं करते हैं? संतू गधा पूछ रयेला है आपसे!

सर्किट भाई आप सबकू सलाम नमस्ते कर रयेला है….और आगे की चर्चा सुना रयेला है. मुन्ना भाई अबी तो सो रयेले हैं..अपुन का नींद उखड गयेला तो मैं ये चर्चा बांचने कू लग गयेला है…आप बी सुनने का अगरबत्ती लगाके…आप लोग  अगरबत्ती लगाके चर्चा सुनेगा तो आप की पोस्ट हिट होयेंगी..तो अबी अगरबत्ती लगाने का और चर्चा सुनने का…

 

मेरी दुनिया मेरे सपने पर ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ भाई बोल रयेले हैं.. वर्ष 2009 के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर्स हेतु संवाद सम्मान:- 20 श्रेणियाँ, 250 नामांकन। नाम फाइनल करने में 'नाकों चने चबाना', 'पहाड़ चीर कर नहर बनाना', 'लोहे के चने चबाना' जैसे सारे मुहावरे सार्थक हो गये। -

 

और झकाझक टाइम्स पर दिल्‍ली ब्‍लॉगर मिलन या मोबाइल मिलन हो रहा है : मजा न आये तो पैसे वापिस (अविनाश वाचस्‍पति) कर रयेले हैं… और पहेली बी पूछ रयेले हैं…

 

हंसते खिलखिलाते ब्लागर…

ये जज्बा कायम रहे….

विचार विमर्श मे मग्न…


मुंह में गुलाब जामुन भरकर
फ़ोन के पीछे मुंह छिपाये…ये कौन? येईच है पहेली….

 

संचिका पर मिथकों का मानव के अवचेतन पर प्रभाव - ५ (अंतिम भाग) पढने का….  मेरी कृति पर राजस्थान का लोक नृत्य की तस्वीरे देख सकते हैं…

 

टिप्पी का टिप्पा टैण टैणेन . कर रहे हईम अजय झा जी…आप टीप के निकल जाते हैं, हम उसे यहां टिकाते हैं….

 

भाई खुशदीप के देशनामा पर

Udan Tashtari said...

मेहमान-ए-खुसुसी :)
राज जी और कविता जी की उपस्थिति ने आयोजन को अन्तर्राष्ट्रीय बना दिया जी.
एक ही साल में यह असर खुशदीप ब्लॉगिंग का की यंगनेस जाती रही..अब समझ में आ रहा है मुझे अपने लिए कि चार साल में मेरी क्या दुर्गति हुई है वरना मियाँ, हम भी जवानों के जवान थे कभी. :)
महफूज़ की शादी तो खैर कई वजहों से जरुरी हो गई है, उसमें यह वजह और आ जुड़ी. अब तो मार्जिन बहुत बारीक बचा है. :)
दराल साहब का हरियाणवी किस्सा जोरदार रहा!
सरवत जमाल साहेब की उपस्थिति उल्लेखनीय रही. हमारे गोरखपुरिया भाई जी हैं.
खाने से ध्यान हटाने की कोशिश में अपना नाम और उल्लेख ठीक खाने के मेनु के बाद देखना कितना सुखद रहा कि क्या बताऊँ..सब आप लोगों का स्नेह है.
सब देख सुन कर आप सही कह रहे हैं हिन्दी ब्लॉगिंग के बढ़ते कदमों को कोई नहीं रोक सकता.
जय हो हिन्दी!! जय हो हिन्दी ब्लॉगिंग!! जय हो हिन्दी ब्लॉगर्स!!

February 8, 2010 11:51 PM

हमारा टिप्पा:-…बिल्कुले ठीक कहे हैं आप कि दुनो जन राज भाटिया जी और कविता जी के आने से हम लोग का मीट इंटरनेशनल लुक मिल गया , बस एक आप जाते तो हम लोग एस्ट्रोनौटिकल मीट कर लेते …..और गजब का शोर मच जाता कि …….इंसानो और एलियन जी ने भी आपस में की ब्लोग्गिंग मीट ।……..ई महफ़ूज़ भाई की शादी और भी बहुत कारण से जरूरी है ……अरे तो हमको समझ में नहीं आता कि ई महफ़ूज़ भाई अपनी लाईफ़ में से ई मोडरेशन काहे नहीं हटाते हैं ?? खाने के मीनू के बाद आपका नाम आया ……….एक दम ठीक आया ….उससे पहले आता तो ……बचता का ………न मीनू….न खाना ? केतना ध्यान रहता है ….भोजन पर । आईये आपके वाले ब्लोग्गर मीट में तो खास तौर से ब्लोग्गर व्रत मीट ( बताईये …व्रत और मीट ..एक साथ राम राम ) रखा जाएगा ॥

 

ताऊजी डॉट कॉम पर खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (191) : आयोजक उडनतश्तरी पूछ रयेले हैं ये पहेली…

 

जवाब देने का….

 

अंधड़ ! पर गोदियाल जी पूछ रयेले हैं…क्या वोट-बैंक सचमुच इतना अक्लमंद है ?

 

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खैर, अपने इन राजनेतावो की तो कहाँ तक तारीफ़ करे, मगर मुझे आश्चर्य उस वोट बैंक पर होता है जिसे ये इस्तेमाल कर रहे है, अपने फायदे के लिए ! क्या वोट-बैंक वाले इतना भी नहीं समझते कि इनका उद्देश्य क्या है ? कल चुनाव हो जायेंगे तो वहाँ भी आन्ध्रा की तर्ज पर कोई कोर्ट आरक्षण को अवैध करार देगा! और ये फिर से कहलायेंगे, बहुसंख्यको द्वारा शोषित लोग ! मगर लाख टके का सवाल यह है कि इन राजनेताओ को इस वोट बैंक को इतना बुद्धिमान समझने का नुख्सा दिया किसने ?

उच्चारण पर "समझो तभी बसन्त!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) पढवा रयेले हैं…

 

मेरा परिचय यहाँ भी है!

जैसे-जैसे आ रहा, प्रेम-दिवस नज़दीक।
गोवा और मुम्बई के, लगे चहकने बीच।।
तोता-तोती पर चढ़ा, प्रेम-दिवस का रंग।
दोनों ही सहला रहे, इक-दूजे के अंग।।

कुछ भी...कभी भी. पर दिल्ली ब्लोग बैठक ( सिलसिलेवार रपट नं ३) झा जी अगली रिपोर्ट जारी कर रयेले हैं….

jhaji

 

इसी बीच फ़ोन पर एकऔर आवाज आई ,,,भाई आपके बताई स्थान के पास पहुंच चुका हूं मगर अबकैसे आऊं । मैंने कहा आप बताईये कहां हैं और कौन हैं मैं फ़ौरन वहां पहुंचता हूं। उन्होंने कहा जाईये जब आप पहचान ही नहीं रहे हैं तो फ़िर आने का क्याफ़ायदा । मैं सकपका गया , मैं आपसे बात तो कर चुका हूं पहले, और आपअपने नंबर से फ़ोन नहीं कर रहे हैं इसलिए पहचान नहीं पा रहा हूं । जाईये फ़िरमैं नहीं आऊंगा । इससे पहले कि मैं और परेशान होता ....एक ठहाका लगाऔर पता चला कि उधर से भाई पंकज मिश्रा जी ब्लोग्गर्स मीट का हालचालऔर बधाई देने के लिए फ़ोनिया रहे थे|

और अब आखिर में ताऊ डाट इन पर ताऊ का गधा संतू आपकी राय मांग रयेला है…संतू गधे को नटखट बच्चे से बचाओ!

 

हां आदरणिय ब्लागर और ब्लागरगणियों, मैं संतू गधा आपको प्रणाम करता हूं और मेरी पीडा आपको सुनाता हूं. और साथ ही ये भी उम्मीद करता हूं कि आप मुझे इस समस्या का सही निदान बतायेंगे.

 

आप यहां उपर जो चित्र देख रहे हैं इसमे एक नटखट बच्चे को मुझे सुई चुभाते हुये आप देख रहे होंगे? यह नटखट बच्चा बहुत समय से मुझे परेशान कर रहा है. यह शरीफ़ बनने का ढोंग करता है. लोगों को कहता है ये अंधा है. जबकि इसने जबरन आंखों पर पट्टी बांध रखी है, लोगो की सहानुभुति पाने के लिये.

 

सूई चुभोने के अलावा यह मेरे गधा सम्मेलन करवाने पर भी उल्टी सीधी बकबास करता रहता है. पता नही इसको गधा सम्मेलनों से चिढ क्यों है? यह जगह जगह रोता फ़िरता है कि गधे ब्लागिंग क्युं करते हैं? मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या गधे प्राणी नही होते? अरे जब मैं अंग्रेजी पढा लिखा हूं तो ब्लागिंग क्युं नही कर सकता? या बच्चे का कापी राईट है ब्लागिंग पर?

अब सर्किट भाई का आप सबकू सलाम नमस्ते….दिन भर खूब काम करने का शाम को मैं ईदरीच मिलेगा….

 

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खाली पिली फिर से आ गया

मुन्ना भाई...मुन्नाभाई आज आप इधर कू ? अरे सर्किट आज क्या है ना अपुन के बिल्डिग में झंडा दिवस मानाएला है. सुबह-सुबह मैंने अपना खिड़की से झाक कर देखा . मेरा हाउसिग सोसायटी का मैदान में कुछ लोग डंडा के ऊपर झंडा बांधने को तैयारी कर रहा था . मै मन में बोला, "अरे फिर आ गया." फिर सोचा खिड़की का पर्दा खींच देता हु ताकि कोई मुझे देख न लेवे. वरना झंडा वन्दन का वास्ते नीचू जाना पडेगा . पर परदा बंद करने में ज़रा सा देर हो गया और मेरे कू देख लिया गया मजबूरी में मेरे को झंडा के पास जाना पडा.


नीचू गया तो सोसायटी का दीवार पर गणतंत्र दिवस बैठा दिखाई दिया. मेरा शक्ल देख वो समझ गया की छुटी का दिन सुबह-सुबह घर से बाहर आना मेरे कू कितना अखर रहा है. उसका चेहरा पर लाचारी भरा मुस्कान झलकने लगा,"क्या करेगा ? डेट फिक्स इच था, आना ही पड़ता है. मजबूरी है. सोरी !" छुटी के दिन उसके कारण लोगो कू घर से बाहर आना पड़ता है. इसका गणतंत्र दिवस को अफ़सोस था. जाहिर है, वो अपना असली गणतंत्र दिवस ईच था. वरना इस देश में जनता का हालत पर सचमुच अफ़सोस करने वाला अब शायद ईच कोई बचेला है.

तो सोसायटी का मैदान में झंडा कू डंडा पर बांधने का तैयारी चल रहेला था . झंडा सोसायटी के चेयरमेन कू फहराना था. बिलकुल दिल्ली वाला स्टाईल में. यानी जबी रस्सी खीचा जावे तो उपर से फुल बरसे. उसका वास्ते सोसायटी का वाचमैन एक-एक फुल का पंखुड़ी अलग कर रहेला था. फिर तोड़ा हुआ फुल को झंडे में लपेटा जाएगा और झंडा का उपर रस्सी का एसा गाँठ बाँध सकता है जो नीचू से खींसो तो उपर से खुल जावे. आखिर में चैयरमैन कू बुलाने वास्ते एक आदमी भेजना पडा . तब करीब दस मिनट बाद वो नीचू को आया. ये हर साल का किस्सा है. हमारा देश में एक गाठ बांधने वाला भी भाव खा सकता है. वक्त जरूरत की बात है, खावे भी कायकू नहीं ? बाद में साल भर उसे पूछने वाला कोई नहीं.

इधर झंडा को गाठ बांधा जा रहा था, उधर झंडा कितना बजे फहराने का, ये बात पर विचार हो रहेला था. बातचीत करने के बाद तय हुआ की दिल्ली में झंडारोहण आठ बजे होगा उसके एक घंटे बाद सोसायटी में झंडा फहराने का.
स्वाभाविक है. आम आदमी का वास्ते आजादी देर से ईच आता है.

झंडा वंदन के वास्ते सोसायटी का सो मेंबर लोग में से सिर्फ चार जनु ही आएला. एक चैयरमैन, दुसरा सैकेटी तीसरा गाठ बांधने वाला और चोथा डंडा खडा कर झंडा बांधने वाला वाचमैन. बाकी सो में से कोई नहीं आया. जैसे तैसे झंडा फहराया गया. गाठ बरोबर खुला, चैयरमैन के ऊपर फुल बरसा जन-गण- मन गाया गया. भारतमाता की जय बोला गया. गणतंत्र दिवस यह सभी गंभीरता से देख रहा था वह कुछ सोच रहेयाला था. पता नही क्या सोच रहा था, पण काई कू सोच रहा था शायद सोच रहा था की अगला साल कू आवे के नाही . कारण वो आया और किसी ने बोल दिया "अरे" ये तो खाली पिली फिर से आ गया तो ?
यग्य शर्मा ,नवभारत टाइम्स

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इश्क़ का सैलाब, शक्ले-अश्क लेकर, ढलकर निकल लियेला है : सर्किटचर्चा

मुन्ना भाई मैं आपकू नमस्ते कर रयेला हूं…क्रिसमस की शुभकामनाएं दे रयेला हुं..

नमस्ते..नमस्ते सर्किट…तुम किदर चले गयेला था? वो बिट्टू बावल्यो अप्पुन को  चर्चा सुना के गयेला था..उसके बाद ब्लाग रस मिलाईच नईं बाप…बहुत प्यास लग रयेली है…

अरे मुन्ना भाई..अपुन अब क्या करेगा? चिट्ठाजगत काम नईं कर रयेला है…अबी सुना है और टाईम लगेगा..तो मैं ये कुछ लिंक ऊठा के लायेला है…अबी सुनने का..

पण सर्किट..पूरी चर्चा सुनाने का…

हां सुनाता है ना भाई…आप फ़ोकट टेंशन काए कू लेने का…? पी.सी.गोदियाल जी अंधड़ ! पर आ जाओ क्रिस, अब आ भी जाओ ! पढने का भाई…

 

यार "क्रिस" यूं कब तलक तुम,
ज़रा भी टस से "मस" नहीं होगे !
गिरजे की वीरान दीवारों पर,
इसी तरह 'जस के तस' रहोगे !!
ज़माना गया,जब परोपकार की खातिर,
महापुरुष खुद लटक जाया करते थे !
अमृत लोगो में बाँट कर ,
जहर खुद घटक जाया करते थे !!

डॉ टी एस दराल  अंतर्मंथन  पर पूछ रयेले हैं क्या आप अपनी या अपने बच्चों की शादी, बिना दान- दहेज़ के कर सकते हैं ? और सुनीता शानू  कुछ विशेष... पूछ रयेली हैं..सर्दी में कैसे नहाएं (अमर उजाला के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित...)

अरे सर्किट…सर्दी मे काये कू नहाने का?

अरे भाई पण जिनको शर्माशर्मी मे नहाना पडता है ना..उन लोगों के लिये फ़ार्मुला बता रये हैं..

तो अपुन को बी बता ना…सर्किट…

लो पढो ना भाई…

सर्दी के मौसम में रजाई से निकलकर नहाने के लिए जाना भी एक विकट समस्या है। इस मौसम में शर्मा जी खुद को सबसे बदनसीब प्राणी समझते हैं। हर सुबह उस व1त उनका मूड उखड़ जाता है, जब पत्नी न नहाने पर बार-बार उलाहना देती है। आखिरकार बीवी कमांडर बनकर उन्हें बाथरूम की तरफ धकेल ही देती है। वह शहीद बनकर अंदर घुस जाते हैं। ठीक ऐसे ही समय पड़ोस से मिश्रा जी के गाने का स्वर आता है, ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए।
बस बीवी का दिमाग तमतमा जाता है, कब तक आलसी की तरह पड़े रहोगे? मिश्रा जी से कुछ सीखो, जो रोज ठंडे पानी से नहाते हैं। एक तुम हो, जो गरम पानी से नहाते हुए भी रो रहे हो। अब श्रीमती जी को कौन समझाए कि मिश्रा जी सचमुच ठंडे पानी से नहा रहे हैं या गरम पानी से। या नहा भी रहे हैं कि सिर्फ राग अलाप रहे हैं। बहरहाल बेचारे शर्मा जी को उठना ही पड़ा।अब यह कोई एक दिन की बात तो है नहीं। रोज-रोज का नहाना, सचमुच कंपकंपी-सी चढ़ जाती है
नल तेजी से चलाएं और ठिठुरते हुए गाएं, ताकि बीवी को लगे कि आप सचमुच नहा रहे हैं। हां, गीले तौलिये से शरीर पोंछना न भूलें

आकांक्षा जी  शब्द-शिखर पर   अमर उजाला में 'शब्द-शिखर' की चर्चा के बारे में बता रयेली हैं…


मेरा फोटो

'शब्द शिखर' पर 23 दिसंबर 2009 को प्रस्तुत पोस्ट हफ्ते भर बंद रहेंगीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ को प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक पत्र 'अमर उजाला' ने 24 दिसंबर 2009 को अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर 'ब्लॉग कोना' में स्थान दिया! 'अमर उजाला' के ब्लॉग कोना में आठवीं बार 'शब्द-शिखर' की चर्चा हुई है...आभार!

और रामप्यारी ताऊजी डाट काम पर खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (153) : आयोजक उडनतश्तरी  पहेली पूछ रयेली है…बताने का भाई..

 

नीचे के चित्र में ताऊ ऊंटगाडी पर ताई को बैठा कर ले जारहा है. और अब ये बताईये कि उसकी ऊंट गाडी के नीचे वाले चित्र मे कौन हैं?

 

ज़ाकिर अली ‘रजनीश’  TSALIIM

पर पूछ रयेले हैं..नारीवादः पुरूषों के शरीर में मौजूद श्रेष्ठता के जींस से कैसे निपटेगा?….     और   घुघूतीबासूती जी पूछ रयेली हैं  और आप सोचते थे कि मनुष्य और पक्षी ही गृह निर्माण करते हैं!.......घुघूती बासूती

 

हमारे सोचने से क्या होता है? इन्डोनेशिया की एक औक्टॉपस की प्रजाति तो ऐसा बिल्कुल नहीं सोचती। वे नारियल के कटोरीनुमा खोल इकट्ठा करते हैं। अब अष्टभुज हैं तो अपनी भुजाओं का प्रयोग भी खूब करते हैं। वे समुद्र के तल से मनुष्यों द्वारा फेंके गए नारियल के खोल उठाते हैं। उनमें से रेत आदि खाली करते हैं और फिर उन्हे अपने निवास स्थान पर ले जाते हैं। वहाँ जाकर दो खोलों को तरीके से एक के ऊपर एक रखकर अपना मकान बना लेते हैं।

डॉ. रूपचन्द्र जी  शास्त्री मयंक  उच्चारण पर नारी की व्यथा बता रयेले हैं…"जी हाँ मैं नारी हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")  संगीता पुरी जी  गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष पर कुछ मदद मांग रयेली हैं. क्‍या कंप्‍यूटर और इंटरनेट के जानकार मेरी कुछ मदद कर सकते हैं ??   हिमांशु भाई  सच्चा शरणम्  पर जब हो जाये दिवसान्त शान्त (गीतांजलि का भावानुवाद ) पढवा रयेले हैं.. आनंद देव  राह चलते पर एक कहानी सुना रयेले हैं.. तब उनके पास रोने के सिवा कुछ नही बचा था 

 

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दो दोस्त थे , दोनो ही मुसीबत के मारे थे ।€ एक बार दोनो एक साथ घर से निकले और आपस मे बाते करते सुख और सम्रिद्धि की तलास मे निकल पडे । दोनो ने यह ठान लिया था कि अब तो ढेर सारी दौलत कमा कर ही घर लौटे गे । दोनो चल्ते जा रहे थे और तमाम आदर्श तथा अध्यात्म की बाते भी बतियाते चल रहे थे । एक ने कहा देख भाई मुझे तो बाबा जी की बाते ही सही लगती है ।दूसरे ने पूछा ओ क्या? पहले ने कहा वह कहते है कि समय से पहले और भग्य से अधिक नही मिलने वाला है । चाहे कित्ती भी नाक रगड ले ।

महाशक्ति  समयचक्र  पर ब्‍लागरो की बीमारी "नारी"  चर्चा कर रयेले हैं..  बी एस पाबला  प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा  पर बता रयेले हैं..अमर उजाला में 'विस्फ़ोट' तथा 'राम राम भाई'

की चर्चा हुयेली है…गिरिजेश राव  एक आलसी का चिठ्ठा  पर  प्रिंटर की धूल और मोटी रोटियाँ   का स्वाद लेने का भाई…


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मायके से श्रीमती जी का आना उस धूल को साफ कर गया है जिसे देख मैं उनको याद करता था। अजीब धूल ! होना एक याद, न होना दूसरी याद। यादें धूलधुसरित होती हैं, मुई फिर झाड़  पोंछ कर खड़ी हो जाती हैं।
कैसा है यह आलस जो धूल को खुद साफ नहीं करने देता? यादों से प्रेम है इसे ..धूल की एलर्जी जो न गुल खिला दे। रोग भी कमबख्त मुझे कैसा लगा !
मैं शुद्ध हिन्दुस्तानी बेटा - माँ और पत्नी के बीच अपनी चाह को बाँटता! चाह बँट भी सकती है क्या? धुत्त !
लेकिन आज जो प्रिंटर पर धूल नहीं, अम्माँ याद आ रही हैं।
.. पिताजी डाइनिंग टेबल पर बैठे हैं और अम्माँ रसोई से आवाज लगा रही हैं। पिताजी के उपर रची जाती कविता को अधूरा छोड़ टेबल पर आता हूँ तो खाना लगा ही नहीं है !
अम्माँ ई का?

अनवरत पर वकील साहब ले जा रयेले हैं शाजापुर टू आगर वाया 'धूपाड़ा' सिटी की सैर करवा रयेले हैं….

अरे सर्किट ये धूपाडा सिटी किदर कू है रे?

अरे भाई ये भौत बडा सीटी है भाई…पढके समझने का…एईसेईच समझ नईं आयेगा….

 

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एक किलोमीटर गाँव तक बस का सवारियों को उतारने चढ़ाने के लिए जाना कुछ अजीब सा लगा। मैं ने पूछा -  'धूपाड़ा' बड़ा गाँव है?

-बड़ा गाँव ? सिटी है साहब, सिटी।

बताने वाला संभवतः विनोद कर रहा था। मैं ने भी  विनोद में सम्मिलित होते हुए पूछा -तो वहाँ नगर पालिका जरूर होगी?

-पंद्रह हजार की जनसंख्या है। लेकिन नगर पालिका हम बनने नहीं देते। हाउस टैक्स और न जाने क्या क्या टैक्स लग जाएंगे, इस लिए। और ये जो आप ने मोड़ पर घर देखे थे ये 'धूपाड़ा' की कॉलोनी है। अब वह नौजवान वाकई विनोद ही कर रहा था।

मैं ने भी उस विनोद का आनंद लेने के लिए उस से पूछा -तो भाई! इस सिटी की खासियत क्या है?

-यहाँ लोहे और इस्पात के औजार बनते हैं। गैंती, फावड़ा, कैंची, संडासी आदि। उस ने  और भी अनेक औजारों के नाम बताए।

Albelakhatri.com  सबको बधाई और रुपये भिजवा रयेले हैं..बधाई सभी स्वीकृत आलेखों के लेखकों को ! आप सभी को दो- दो हज़ार रूपये भेजे जा रहे हैं  और 'अदा' जी काव्य मंजूषा पर बात से बतंगड़ तक..  बना रये ली हैं   और उनके पूरे परिवार की तरफ से आप सबको क्रिसमस की हार्दिक शुभकामना !!!!! दे रयेली हैं….

 

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बात से बात निकली थी
और बात कहाँ तक आ पहुंची !
बातों बातों में ही,
बात का बतंगड़ बन गया
बेबात ही बात बनती गयी
और बस बात बढ़ती गयी
बात इतनी बढ़ गयी
कि बातें बाकी न रहीं
और फ़िर बस
बात ही बंद हो गयी...!!

गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल'  जबलपुर-ब्रिगेड पर बता रयेले हैं…  फोटो :श्री गोकुल शर्मा जी ,श्री जैन,के साथ ब्लॉगर श्री महेंद्र जी सम्मानित हुए ….और खुशदीप सहगल  देशनामा पर पूछ रयेले हैं कि पुरुष नर्स को नर्सा क्यों नहीं कहते...खुशदीप…..


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अब हमारे डॉ अरविंद मिश्र जी हैं सीधे इंसान...इसलिए मोहतरमा के चक्कर में पड़ गए...और अदाकारा, शायरा का हवाला देकर ब्लॉगरा, चिट्ठाकारा का सवाल पूछ बैठे...शायरा कहते हैं या नहीं ये तो शायर ही बता सकते हैं...जहां तक अदाकारा का सवाल है तो अंग्रेज़ी में भी आजकल महिला और पुरुष के लिए एक ही शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा है और वो है एक्टर...हमने भी पुरुष अदाकार के लिए एक्टर और महिला अदाकार के लिए एक्ट्रैस शब्द पढ़े थे ....लेकिन नए ज़माने में ये भेद मिट गया है...सब बराबर यानि एक्टर सिर्फ एक्टर...एक्टर ही क्यों...फिल्म निर्देशक भी पुरुष हो या महिला, निर्देशक ही रहता है निर्देशिका नहीं बन जाता...अंग्रेज़ी में भी निर्देशक के लिए एक ही शब्द है- डायरेक्टर....महिला निर्देशकों के लिए डायरेक्ट्रेस नहीं बन जाता...

अरे सर्किट खुशदीप भाई बात तो सही बोल रयेले हैं..पण जरा उनसे पूछने का कि तुम्हारी भाबी का नाम मुन्नी उन्होने रखेला है या वो पैदायशी मुन्नी मेंटेन है?

अरे भाई आप काहे कू खाली पीली टेंशन ले रयेला है? अपुन है ना…आप तो  चर्चा सुनने का चकाचक….मैं और खुशदीप भाई सब संभाल लेंगे..ना…भाई…राज भाटिय़ा जी  पराया देश  पर अन्तर सोहिल जी ने पूछा है कि..   तो भाई राज भाई बता रयेले हैं…

 

सोहिल जी, हमारे यहां वेसे तो सारा साल ही सर्दी का मोसम रहता है, गर्मी एक दो सप्ताह ही होती है, लेकिन सर्दी कडाके की सितमबर के अंत मै शुरु होती है, जो अप्रेल के अन्त तक चलती है, बर्फ़ वारी अकतुबर मै एक बार हो जाती है , फ़िर नबम्बर के अन्त मै होती है, यानि लगातार नही होती, ओर बहुत ज्यादा सर्दी नबमबर के अन्त से शुरु होती है ओर मार्च तक रहती है, बीच बीच मै कभी कभी टेम्प्रेचर -३०, -३५ तक भी चला जाता है, ओसतन . १० ओर -२२ के बीच रहता है.

बी एस पाबला जी  हिंदी ब्लॉगरों के जनमदिन वाले ब्लाग पर बता रयेले हैं कि आज हर्षवर्धन त्रिपाठी तथा पुनीत ओमर का जनमदिन है

अरे सर्किट..दोनों को बधाई देने का ना..अपुन की तरफ़ से..

अरे भाई..आप टेंशन काहे कू लेता है? अपुन ये काम बिना बतायेई कर डालता है ना…हां तो आगे सुनने का…वाणी गीत जी ज्ञानवाणी   Merry X-mas............. बोल रयेली हैं..  और भाई वो अपुन के दोस्त राजकुमार ग्वालानी जी  राजतन्त्र बता रयेले हैं कि उन्होने दो दशक बाद किया बस का सफर कियेला है..सूर्यपुत्र महारथी दानवीर कर्ण की अद्भुत जीवन गाथा “मृत्युंजय” शिवाजी सावन्त का कालजयी उपन्यास से कुछ अंश – ३७ [अश्वत्थामा द्वारा कर्ण को कर्ण का सौंदर्य वर्णन.. ] कर रयेले हैं विवेक रस्तोगी जी… महावीर जी  यू. के. से डॉ. गौतम सचदेव की दो ग़ज़लें  पढवा रयेले हैं…

 
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ग़ज़ल

डॉ. गौतम सचदेव


आ ज़रा मंज़िल बदल लें
दो क़दम ही साथ चल लें

छोड़ दें अंदर अँधेरे
आ ज़रा बाहर निकल लें

फिर कहेंगे या सुनेंगे
बस अभी चुपचाप चल लें

ग़ज़ल

डॉ. गौतम सचदेव


चाँदनी मुस्कान-सी फैली हुई है
रोज़ रातों में बिछी मैली हुई है

दे रही उत्तर बिना पूछे सभी को
मुँह दिखाने की नई शैली हुई है

आदमी के पास यह कमसिन गई थी
लुट गई या और मटमैली हुई है

रूप को गंदा करेंगी ये निगाहें
वे समझती हैं खुली थैली हुई है

चाहिये दिल साफ़ हो 'गौतम' हमारा
देह का क्या वह अगर मैली हुई है ।

***************************

 

शब्दों का सफर पर वडनेरकर जी बता रयेले हैं मामा शकुनी, सुगनचंद और शकुन्तला के बारे में…  और Shastri JC Philip जी  सारथी  पर ईसा जयंती: शुभ कामनायें!!  दे रयेले हैं…राजीव तनेजा जी  चर्चा पान की दुकान पर बोल रयेले हैं..सैंटा ज़रूर आएगा!!   और अन्तर सोहिल = Inner Beautiful  पर बता रयेले कि आजकल बहुए सास को इस माफ़िक ताना मारती हैं..मैनें तुम्हारा ठेका नही ले रखा है….प्राईमरी के मास्साब ने एक पोस्ट लिखेली है एक मौन सन्देश - माइक्रो फोटो पोस्ट !!  ……अरविंद मिश्रा जी क्वचिदन्यतोअपि..........! पर एक अजूबा मेरे आगे -यह कैसा पीपल का पेड़! के बारे मे बता रयेले हैं…

 

सचमुच यह पीपल का वृक्ष तो देखने के मामले में न भूतो न भविष्यति टाईप का ही लग रहा था -विस्मय और भयोत्पादक ! आखिर चैन बाबा के ठीक समाधि पर अवस्थित था वह! अब ऐसे दृश्य को देखकर  कोई नतमस्तक हुए बिना कैसे रह सकता है!लिहाजा  मैं तुरत नतमस्तक हो गया -आप भी देर न कीजिये ! फिर इतिहास पुराण की ओर ध्यान दिया -पता लगा कि बस्ती के ही एक ब्राह्मण पुरखे ने तत्कालीन समाज (समय का निर्धारण नहीं हो पाया -मगर बात २५०-300 वर्ष पीछे से कम की  नहीं है ) के सामंतों /जमीदारों के शोषण और अत्याचार से जीवित समाधि ले ली थी ! और कालांतर में यह पीपल का पेड़ वहां उग आया मगर इसमें कोई केन्द्रीय तना नहीं नहीं है -बस ऊपर से नीचे यह घनी पत्तियों से ढका है !

 

संगीता पुरी  गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष  पर  सलाह दे रयेली हैं.. विद्यार्थी अधिक से अधिक फॉर्म भरे और अपने लिए कोई न कोई सीट सुरक्षित रखने की कोशिश करें!!  डॉ. रूपचन्द्र जी शास्त्री मयंक  चर्चा मंच पर "क्रिसमस पर्व की शुभकामनाएँ!" (चर्चा-मंच)   देते हुये चर्चा कर रयेले हैं.. और Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून   जी बोल रयेले हैं..कि कार्टून:- भगवान किसी ब्लागर को ये दिन न दिखाए …….भारतीय नागरिक - Indian Citizen   बता रयेले हैं रुचिका के मामले में चौटाला की बेशर्म सफाई के बारे में……और बी एस पाबला जी हिंदी ब्लॉगरों के जनमदिन पर बता रयेले हैं..  आज कविता वाचक्नवी की वैवाहिक वर्षगाँठ है

अरे सर्किट…कविता जी को भौत भौत बधाई और शुभकामनाएं देने का…

अरे भाई दी ना अपुन ने उनको शुभकामना और बधाई…आप टेंशन नईं लेने का..एक और दे डालता हुं ना मैं बधाई उनको…  हां तो अब आगे सुनने का भाई…और मुरारी पारीक जी  गुन गुनाते रहो!!  पर हंसी के हथोड़े मुर्र्र्रारी लाल के साथ !!! रेडियो शो का आनंद लीजिये !!!  लो सुनने का भाई….और Alag sa पर शर्मा जी बोल रयेले हैं…ऊपर से प्रत्यक्ष खबर भेजने का नियम नहीं है.   और अल्बेला खत्री बोल रयेले हैं  इज़्ज़त की माँ की आँख ! इज़्ज़त को क्या घर में बैठके चाटने का है ? अपुन तो अपना इज़्ज़त हाथ में लिए घूमती हैं ...जितना चाहे ले लो....पर ब्रेक दे दो……और राह चलते  पर आनंद भाई पूछ रयेले हैं कितना सही है जन्सन्ख्या के आधार पर योजनाओ का संचालन ?  अनवरत पर वकील साहब वैलकम मिलेनियम! बोल रयेले हैं…

 

और भाई महफूज़ अली  मेरी रचनाएँ !!!!!!!!!!!!!!!!!  पर   नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ....: एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी....देख कर बताइयेगा...: महफूज़….

 


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मैं टूट जाऊँगा तुमने ये सोचा तो था,

पर देखो मैं पूरा नज़र आता हूँ.

मुझे छोड़ा था तुमने उस अँधेरे घर में,

अपने अन्दर ही मैं एक दीया पाता हूँ.

Oops!! What am I thinking!!! पर Thinker जी बोल रयेले हैं…..

 

अनुराग शर्मा जी An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय पर  लेन देन - एक कविता पढवा रयेले हैं….

 

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दीवारें मजदूरों की दर-खिड़की सारी सेठ ले गए।
सर बाजू सरदारों के निर्धन को खाली पेट दे गए।।
साम-दाम और दंड चलाके सौदागर जी भेद ले गए।
माल भर दिया गोदामों में रखवालों को गेट दे गए।।
मेरी मिल में काम मिलेगा कहके मेरा वोट ले गए।
गन्ना लेकर सस्ते में अब चीनी महंगे रेट दे गए।।

SELECTION & COLLECTION पर संपत जी पहेली का रिजल्ट बता रयेले हैं…पहेली - ११ सही उत्तर सीमा गुप्ताजी-विजेता बनी संगीता पुरीजी बधाई!….देशनामा पर एक थी रुचिका, एक है राठौर...खुशदीप  बता रयेले हैं ….

 

मैं रुचिका हूं...आज मैं आपके बीच होती तो 33 साल की होती...अपना घर बसा चुकी होती...शायद स्कूल जाने वाले दो बच्चे भी होते...लेकिन मुझे इस दुनिया को छोड़े सोलह साल हो चुके हैं...मेरे पापा, मेरा भाई ज़िंदा तो हैं लेकिन गम़ का जो पहाड़ उनके सीने में दफ़न है वो किसी भी इंसान को जीती-जागती लाश बना देने के लिए काफ़ी है...मुझे याद है टेनिस खेलने का बड़ा शौक था...लेकिन मुझे क्या पता था कि यही शौक मेरा बचपन, मेरी खुशियां, मेरा चहचहाना एक झटके में मुझसे छीन लेगा...

 

 

चोरी और हमले के शुभ-मुहूर्त  निकलवाईये…शब्दों का सफर    पर…. और  कवि योगेन्द्र मौदगिल  जी सलाह दे रयेले हैं कि  कुछ सोचना होगा..  और भाई अब 'अदा' जी  काव्य मंजूषा पर अरेंज्ड मैरेज vs लव मैरेज के नफ़े नुक्सान बता रयेली हैं….

अरे सर्किट..जल्दी बताना…अपुन को भौत सख्त जरुरत है बाप…सलाह की…

लो सुनो ना भाई…

 

अरेंज्ड मैरेज में समय बहुत आसानी से बीत जाता है.....शुरू के कुछ साल तो एक-दूसरे को समझने में बीत जायेगे ....प्रेम धीरे-धीरे पनपता है ....और परिपक्व होता है...बच्चों के होने के बाद या फिर बिना बच्चो के भी ...बाद में एक-दूसरे की आदत हो जाती है....
जबकि लव मैरेज में शादी ही तब होती है जब प्यार ख़तम होने लगता है....शुरू के साल बस एक-दूसरे कि कमियाँ निकालने में बीत जाते हैं ....और बाद में यह याद दिलाया जाता है कि तुमने ये वादा किया था वो पूरा नहीं किया.....तुम मेरे पीछे पड़े थे...मैं तो शादी ही नहीं करना चाहती/चाहता था इत्यादि .... शादी सिर्फ लड़ने के लिए ही रह जाती है....

अरे सर्किट..फ़िर तो अपुन बी अरेंजड मेरिज ई बनायेगा बाप…इसमे भौत फ़ायदे दिख रयेले मेरे कूं…

अरे भाई…आप काहे कू टेंशन ले रयेला है? खुशदीप भाई लग रयेला है ना मुन्नी मेंटेन को अरेंज मेरीज के लिये तैयार करने कू…आप टेंशन नईं लेने का…

अरे सर्किट…तू  और खुशदीप भाई अपुन को मामू समझ लियेला है क्या? अक्खा महीना होगया और अबी तक छोकरी बी दिखाया नईं…क्या तिहाड से खुशदीप भाई इत्ती सी बी परमिशन नई ले सकता क्या? अरे अपुन ज्यास्ती बोलेगा तो फ़िर तुम लोग कुछ का कुछ समझ लेंगा?  अरे जब जब राठौर को इत्ते बडे पाप की सजा यहां क्या मिली? सिर्फ़ छ महीन एकी लगी ना? और वो बच्ची की जान की कीमत बस ..सिर्फ़ ६ महिने की सजा?

 

अरे भाई आप आज खाली पीली..टेंशन ले रयेला है..भाई अपुन का धंधे मे  टेंशन देने का…लेने का नई>..क्या?  क्या समझा?

अरे सर्किट…तू अपुन के दिमाग का हलवा पूरी तो बना मत…और अबी का अबी अदाजी को फ़ोन करने का और बोलने का कि मुन्ना भाई के वास्ते एक अरेंज मेरिज वाली छोकरी ढूंढने का जल्दी फ़टाफ़ट…क्या? क्या समझा?

अरे भाईअपुन सब समझ गयेला ना..आप टेंशन नईं लेने का..मैं अबी अदा जी को फ़ोन कर डालता है ना…आप तो आगे चर्चा सुनने का  भाई…उधर आज पंकज मिश्रा जी स्टिंग आपरेशन की सारी तैयारियां पूरी, जल्द ही होगे बेनकाब गुनह्गार (चर्चा हिन्दी चिट्ठो की   कर रयेले हैं..

अरे सर्किट…किसका आपरेशन कर रयेले हैं?  क्या होगयेला रे….जल्दी बताने का..

अरे भाई अब क्या बतायेगा? इदर तो रोज नई नौटंकी गाली गलौज का फ़ैशन हो गयेला है…वो ताऊ और बाबा लोगों को कोई गाली दियेला है…

अब बात यह आती है कि ये है कौन तो मै आप सबकी जानकारी के लिये बता दु कि इन महाशय के बारे मे सारी जानकारी इकट्ठी कर ली गयी है और जल्द ही स्ट्रिन्ग आपरेशन के तहत पेश किया जायेगा!

आपको याद होगा कि एक स्टिंग आपरेशन पहले भी हो चुका है तो अब ये भी आपरेशन आप सब देख ही लो और हा अगर इन महाशय को यह लग लग रहा है कि मै बस हवा मे बात कर रहा हु तो गलत समझ रहे है  ! बता दु कि यही दोस्त इससे पहले एक महिला के नाम से कई लोगो की तेल बाती जला चुके है ….यानी ये एक महिला के नाम से ब्लाग लिखा करते थे …और हा सारा प्रमाण हमारे पास पडा है ..और जल्द ही पब्लिश करुगा

ताऊ डॉट इन पर ताऊ पहेली –54 आ गयेली है

 

यह कौन सी जगह है?

और वहां पर रामप्यारी सांता बनकर गिफ़्ट बांट रयेली है…….

 

rampyari-Santa clause

क्रिसमस की शुभकामनाएँ'

प्रिय बहणों और भाईयों, भतिजो और भतीजियों सबको शनीवार सबेरे की घणी राम राम.

'आप सभी को

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क्रिसमस की शुभकामनाएँ'

 

गिरीश पंकज  चर्चा पान की दुकान पर बोल रयेले हैं… गइया को कचरा, तू दूध डकार!!!  वीर बहुटी पर निर्मला कपिला जी गजल पढवा रयेली हैं…ललित शर्मा  शिल्पकार के मुख से  पूछ रयेले हैं…काहे नेह लगाय!!!

 

शिल्पकार

कोई  नाचे रोये गाये कोई सारंगी तान सुनाय

कहीं  मरघट  कहीं  जगमग  कोई धुनी  रमाय

खुब  लगा  मेला  जग  का देखे आँख न समाय

हंसा जग है एक सराय

एक पल का ठहराव यहाँ पर काहे नेह लगाय

डॉ टी एस दराल  अंतर्मंथन पर दुनिया क्या कहेगी --क्या सोचेगी ----?? कुछ नहीं कहेगी, कुछ नहीं सोचेगी --- पर पिछली पोस्ट मे आई राय का निष्कर्ष बता रयेले हैं…इसे पढने का भाई..और आप बी दहेज नईं..लेने का…


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अधिकाँश मित्रों का विचार था की ---
१) बेटे की शादी में दहेज़ न लेना तो अपने हाथ में है, लेकिन बेटीकी शादी में न देना दूसरों पर निर्भर करता है।
२) कभी कभी पारिवारिक दबाव में आकर लेना देना करना पड़ताहै।
३) अभी समाज में ऐसे साहसी व्यक्ति बहुत कम हैं, जो बिना दहेज़के बच्चों की शादी कर सकें।

और Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून पर देखिये…कार्टून:- ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है..

 

और आज अर्से बाद बवाल भाई  जबलपुर-ब्रिगेड पर दर्शन दियेले हैं..सिलसिला-ए-उल्फ़त लेकर…

 


बवाल एज़ वक़ील

उनसे मेरी उल्फ़तों का सिलसिला,
चल निकला -- चल निकला

इश्क़ का सैलाब, शक्ले-अश्क लेकर,

ढल निकला -- ढल निकला

--बवाल

अब भाई अपुन जा रयेला है..आज वो लक्की सिंह का फ़ोन आयेला था…..वो तकादा कर रयेला था कि क्रिसमस तक काम कर डालने का बोला था पण कल क्रिसमस बी चली गयेली है…मैं अबी जाके उसको समझा डालता है भाई.…..आप खाना खाके..पानी पीके…सोने का भाई…गुडनाईट….

 

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घणी सोवणी लाग री है आज तो..: बिट्टू बावल्यो री ब्लाग चर्चा

बिट्टू बावल्यो

आप सब लोगां और लुगाईयां न बिट्टू बावल्यो री परणाम . मैं बाजार जावै हो पर म्हारी बिंदणी बोली कि अईयां कईयां बाजार जावोला? पहली मन्नै बिलाग चर्चा बांचकै फ़ेर बाजार जावो.

मैं बोल्यो अर बावली बातां क्युं करै है तू? मैं वापस आकर सुनाऊंलो..पण वा ओ बीरबानी की जात…एक बार जिद्द पकड ली सो पकड ली…अब थे बी सुण ल्यो आज की चर्चा..ऊंका पाचे मैं बाजार जाऊंलो…अरे बिंदनी सुण री है के?

अजी थे सुनावो तो सही..बिना फ़ालतू में ई सुण री है के..सुण री है के..लगा राखी है..मैं के बहरी हूं?

अच्छा बिंदनी बहरी नईं है तो ले सुण…

वो महेंद्र मिसरजी टूटे दिल की आस : हर साँस चलती है ओ जानम तेरे नाम से सुणारया हैं…

जानम कुर्बान हम तेरी प्यारी सूरत देख कर हो गए
तुमसे मोहब्बत करके जानम हम बदनाम हो गए.

अजी बिल्या का बापू ओ काईं बोलरया हो? थानै किमी सतूनो बी है कि नई?

अरे बिंदणी..या मैं नईं बोलरयो हूं..यो तो मिश्रजी बोलरया हैं..अब आगे सुण…वो पाबला जी सुणारया हैं गजरौला टाईम्स में 'पारूल चाँद पुखराज का' की खबर छपी है…और डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी बता रया हैं कि आज "450वाँ पुष्प" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") लिख दिया है….

और अब अरविंद मिसिरजी ....जैसे अदाकारा ,शायरा वैसे ब्लागरा/चिट्ठाकारा क्यों नहीं? बतारया है…तो अब मैं हो गयो ब्लागर न तू होगई ब्लागरी…

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शायरा शायरा सा कुछ! भले ही व्याकरण के लिहाज से यह गलत हो मगर एक काव्यमय सौन्दर्य तो इसमें निश्चित तौर पर है -विश्वास न हो तो मेरी टेक्नीक इस्तेमाल कर देख लें! अगर हम आगे किसी महिला ब्लॉगर का तआर्रुफ़ करते वक्त यह कहेगें कि लीजिये मिलिए मोहतरमा से.... ये हैं एक मशहूर ब्लागरा ......तो कितना अच्छा लगेगा! हैं ना ? फिर ब्लॉगर शब्द नपुंसक लिंग ही क्यों बना रहे ? आज के दौर में चारो ओर विशिष्ट से दिखने की चाह में महिला ब्लागर अगर ब्लागरा का संबोधन स्वीकार कर लें तो हर्ज ही क्या है ?

अरे बिल्या का बापू…थारी के मति मारी गई? जो मिसिरजी कह दी और थमा मान ली? अरे थम बणो ब्लागरी और हम बीरबानी तो रहेंगी ब्लागर…नै तो सब के सब ब्लागर रहो…ओ काईं बात हुई? अरे आ तो ऐसी बात हुई कि गौमाता है तो सांड जी को गौपिता बोलणो पडेगो कि नई….अब आगे सुणावो…

हां बिंदणी बात तो तू सांची केवे है…ये मिसिरजी बी दिन भर चटकारा लेता रेवे न म्हारे को तेरे से डांट खिलवा दी…तो अब तू आगे सुण…रायटोक्रेट कुमारेन्द्र पर डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर बतारया है यदि चित्र देखने की इच्छा है तो इन्हें भी देख लें….यानि अमिताभ बच्चन की पा वाली फ़ोटू दिखारया है..

अरे बिल्या का बापू..वा सनीमा तो मेरे को बी देखणा है…कद दिखावोगा?

अरे अबी तो या चर्चा सुण ले..काल से चार दिन की छुट्टी लाग री है तो आपां दोनू ही चालस्यां या सनीमा देखणे…और लगे तो शेखावत जी और आशीष जी को बी ले चालागां….सब टाब टिकरां सहित देखकए आवांला…

हां यो ठीक रहसी…अब आगे सुणावो..आगे काई है ….

अरे बिंदणी आगे कांई सुणाऊं? अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!! पर पंकज मिसिरजी के कने समीरजि रो टेलीफ़ून आगयो और वो भलो आदमी उणसे पूछ्य़ो के सर आप शरीर से जितने भारी लगते हो आपकी आवाज उतनी ही पतली क्यूं है? अब बता समीरजी बिचारा शरीफ़ आदमी कईं जवाब देता?

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नही समझे अरे भईया बादशाह है ही कितने अपने समीर लाल “समीर” जी की बात कर रहा हु …..ह तो अपने ब्लागजगत के बादशाह श्री मान समीर लाल जी का फ़ोन आया हमारे पास ….मै तो नम्बर देख कर ही समझ गया कि यह भारत मे तो कही से नही नम्बर है क्युकि यहा से लगभग सारे नम्बर का पहला दुसरा तो मालूम ही रहता है ..

और ले सुण खुशदीप सहगल भायो कईं केवे हैं…हाथी की सवारी गांठती चींटी...खुशदीप


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स्लॉग ओवर
एक हाथी स्विमिंग पूल में फिसल कर गिर गया...स्विमिंग पूल में जितनी चींटिया थी बाहर भागने लगी...लेकिन एक दिलेर चींटी हाथी के ऊपर ही चढ़ गई...उसकी सहेली ने देखा तो चिल्ला कर बोली...डुबो...डुबो साले को पानी में...स्विमिंग पूल में घुस कर लड़कियों को छेड़ता है...

अरे बिल्या का बापू..थारी तो सही मे मतिई खराब होगी…अरे वा कीडी (चींटी) भायेली सही तो केवे है..ऐसा सत्यानाशी छोरी छेडू हाथी न तो खूब कूटणो चाहिये….अब ओज्युं नी छेडेगो वो हाथी…बीरबानियां और छोरयां न…आगे सुणावो..बेगा बेगा…अब चूलो बालबा को बखत बी हो रयो है….

तो ले सुण..अब आगे की वो थारा कोटा आला वकील साहब अनवरत पर अकाल ...... शिवराम की कविता पढवारया है…और 'अदा' जी काव्य मंजूषा आली पुनर्जन्म... पर एक कविता पढवारी है…और कविता पढकर मन्नै तो यूं लागे कि मैं थारा बिंद नई होकर कूकरो बण गयो होवंतो तो आज घणा मजा मे होतो?

अरे बिल्या का बापू..थम काईं पागल हो गया के? या थारै मे कोई भूत प्रेत आगयो? मिनख से कूकरा क्यों बण रया हो?

अरे बावली बिंदणी सुण..जै या ई बात सांची है तो मैं तो मिनख बण कर घणो पछता रयो हूं…

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बिल्या का बापू ..थम तो घणा बेशर्म होगया..या गोरी का पेट पै कूकरा न क्युं चढा राख्यो है?

अरे मैं कोनी चढाराख्यो…तूं पढले..खुदई…

हनी डार्लिंग कि टेर फिर हर पल देवे सुनाई
नयन से नयन उलझ जैहें, ज्यूँ प्रेम सागर लहराई
बात बात में हम उनका गलबहियाँ भी लगाई
गोड़ हाथ के बात ही छोडो, नाक मुंह भी चटवाई

हनी डार्लिंग कि टेर फिर हर पल देवे सुनाई
नयन से नयन उलझ जैहें, ज्यूँ प्रेम सागर लहराई
बात बात में हम उनका गलबहियाँ भी लगाई
गोड़ हाथ के बात ही छोडो, नाक मुंह भी चटवाई

ओझा-उवाच पर ओझा जी बोलरया है न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्य: ले पढ ले..

शाम को दोस्तों की मण्डली बैठी और मैंने कहा 'अबे 10 रुपये का समान 750 रुपये में ! वॉट द... '
'तुम्हारी मानसिकता अब भी वही है. इटस नोट अबाउट 750, इटस अबाउट योर मेंटालिटी. द पीपल आउट देयर कैन पे अँड दे डोंट केयर'
'आई अग्री ! शायद अभी टाइम लगे मेंटालिटी बदलने में'

और कवि योगेन्द्र मौदगिल सुणा रया हैं शब्दों से सहवास मियां .....……और आज सर्किट जी पहुंचग्या हैं चर्चा हिन्दी चिट्ठो की !!! – पर चर्चा करण वास्ते ..आज की चर्चा सर्किट भाई कर रयेले हैं! (चर्चा हिंदी चिट्ठों की)..

अरे बिल्या का बापू…यो सर्किट तो वोई है ना..मुन्ना भाई आलो? फ़ेर यो मिसिरजी के पास कईय़ां पहुचगयो? काई लाडडू..गुलाबजामुन खाबा तांई गयो के यो राममारयो? मुन्ना भाई न क्युं छोडगयो?

अरे बिंदणी..तू तो बस पूरी बात सूणै कोनी..और ले लट्ठ शुरु होगई? अरे वो तो मिसिर जि मिलगया सर्किट नै..और उणको लेपटोप लेके मोबाईल पर ही चर्चा सुणवा दी मुन्ना भाई न…जईयां मैं कदे कदे तन्नै..फ़ोन पै सुणाऊं हूं..

अच्छा या बात है के..फ़ेर तो कोई बात ना…अब थे आगे सुणावो…

ले सुणले…आज उड़न तश्तरी ... क सागै घणी माडी हो गई…अपने प्रिय, जिसने मेरी गोद में दम तोड़ा: एक श्रृद्धांजलि!!

अजी बिल्या का बापू..शुभ शुभ बोलो जि..या काईं केवो हो? कांई गमी उमी होगई के?

अरे बिंदनी पूछएई मत…उणको लेपटोप को स्वर्गवास होगयो…घणी बुरी हुई…रामजी उंकी आत्मा न शांति देवे…

मैं रात भर तुम्हें गोदी मे लिए हर संभव इलाज करता रहा. जो जहाँ से पता चला वो दवा की मगर होनी के कौन टाल सकता है. सुबह सुबह तुमने एक लम्बी सिसकी ली और मेरी गोद में ही दम तोड़ दिया. सूरज बस उगने को था.

मैं आवाक देखता रह गया. नियति के आगे भला किसका जोर चला है.

जी.के. अवधिया जी चर्चा पान की दुकान पर पर राजिम - छत्तीसगढ़ का प्रयाग का बारां म बतारया है…राजतन्त्र पर पढ सकै है..रास्ते में मौत का सामान….

और आज रामप्यारी की पहेली फ़र्रुखाबादी विजेता (152) : संगीता पुरी जी जीत गई है…

और जबलपुर-ब्रिगेड पर बिल्लोरे जी सम्मानित होंगे श्री महेंद्र मिश्र ,श्री सनत जैन भोपाल ,श्री गोकुल शर्मा दैनिक भास्कर जबलपुर … और अब आखिर म लिलले म्हारी लाडली लविज़ा | Laviza से…मम्मा….. आफिछ …. आफिछ…. ?? आज कल घणी समझदार होगी है लविजा…

lavija

पहले जब मम्मा या पापा ऑफिस जाते थे तो मैं भी उनके साथ जाने की जिद करती थी. पर अब मैं समझदार हो गयी हूँ. मुझे पता है की ऑफिस तो जाना पड़ता है ना…

इसलिए अब जब मम्मा ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रही होती हैं तो मैं रोज़ ऐसे पूछती हूँ, ” मम्मा… ओफिछ…. ओफिछ…. ?

फिर जब मम्मा हाँ में जवाब देती हैं, तो मैं फिर से अपने खेल में बिजी हो जाती हूँ.

क्यूँ है ना समझदारी वाली बात

हां जी आजकल तो लविजा घणीई समझदारी री बातां क्ररे है…सुणॊ जरा लवि कि मम्मी न फ़ोन कर दियो के आज लवि की नजर उतार देसी…घणी सोवणी लाग री है आज तो..

हां मैं फ़ोन कर द्य़ू ला…थूं चिंता मत कर….

तो बहणों और भाईयो अब बिट्टू बावल्या और ऊंकी बिंदणी न इजाजत द्य़ो…आगला सप्ताह म फ़ेर आवांगा..आपरे वास्ते एक नई चर्चा लेकर…..

आपरो बिट्टू बावल्यो

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कछु हमाओ फ़ायदो..कछू तुमाओ फ़ायदो..करके कल आ रयेले हैं आपसे मिलने कू..

सर्किट रेल्वे स्टेशन पर ठनठनगोपाल  बुंदेलखंडी को लेने के लिये प्लेटफ़ार्म पर खडा है. ट्रेन आकर रुकती है…ठनठनगोपाल बुंदेलखंडी  जी ट्रेन से उतरते हैं…और सर्किट उनको रिसीव करता है…अब आगे….

अरे आवो आवो..ठनठन गोपाल जी मैं सर्किट आपका मुंबई मे स्वागत कर रियेला है..

ठणठन गोपाल : पर बड्डे हम तो आपको पहचानत ई नई हैं…आप कौन?

सर्किट – क्या बात कर रयेले हैं ठनठन भाई? आप सर्किट भाई को नईं पहचान रयेले हैं? हम मुन्ना भाई के खासमखास हैं बीडू…

ठनठन गोपाल – अरे बड़े भाई…तो पहले काये नही कहे हते कि आप मुन्ना भाई के आदमी हैं? खामखा हमको डरा दिये …? हमाओ तो मुंडा वैसे ई घूम गओ है इत्ती लम्बी यात्रा से. अब बड्डे तुम मुन्ना भाई के आदमी हो तो हमाये भी खास हि कहलाए…अब हमें एक दुसरे काम के लाने जाना है इतेई मुम्बई में…कल आकर मिलिहै मुन्ना भाई से…

सर्किट – अरे ठनठन भाई…हम आपकू लेके चल रयेला है ना बाप..आपकू किदर जाने का?

ठनठन गोपाल – बड्डे..हमे अकेलेई जानो है ऊते…काय नई समझ रहे यार सर्किट भाई..ऊ कछु काम ऐसो है कि कछु हमाओ फ़ायदा हुई है..कछू तुमाओ बी करा देहैं…पर हम कल आकर मिलिहैं तुमसे अऊर मुन्ना भाई से…अब देखो वो हमाए लाने चले आ रहे हैं लिवाए..उनहि के कने जानो है. समजा करे याल…

सर्किट – बिल्कुल ठीक कह रयेले हो ठनठन गोपाल भाई…हम बी जा रयेला है और मुन्ना भाई का टेम हो गयेला है चर्चा सुनने का…तो हम मुन्ना भाई को चर्चा सुना डालता है…आप कल जब बी आने का होयेंगा ना..अपुन को फ़ोन लगा डालने का ठनठन भाई..अपुन तुमको उदर सेईच आकर ऊठा लेगा…अब मैं बी जा रयेला है..

 

और अब सर्किट मुन्ना भाई के पास आकर…

भाई ..भाई..ठनठन गोपाल बुंदेलखंडी मुंबई आ गयेले है…और बोल रयेले थे कि कछु हमाओ फ़ायदो..कछू तुमाओ फ़ायदो..करके कल आ रयेले हैं आपसे मिलने कू..

अरे सर्किट ठीक है..वो तो कल ही इदर आयेंगे ठनठन भाई..अबी तुम चर्चा सुना डालने का..

हां भाई..मैं कबी मना किया?….सुनने का है तो सुनो…भाई..टेंशन नईं लेने का…saMVAdGhar संवादघर पर संजय ग्रोवर पूछ रयेले हैं उदारता क्या है ?  और शाश्त्रीजी चर्चा मंच – पर उडनतश्तरी की पोस्ट "हाय री ये दुनिया?" (चर्चा मंच) का हैडिंग लगा कर चर्चा कर रयेले हैं..और रचना त्रिपाठी जी  टूटी-फूटी पर बोल रयेली हैं जिस दिन एक गृहिणी के कार्यों को महत्व मिलने लगेगा उसी दिन नारीवादी आन्दोलन समाप्त हो जायेगा…।

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क्या आप जानते है कि हर एक व्यक्ति को चाहे नर हो या नारी ईश्वर ने कितनी बड़ी जिम्मेद्दारी सौपी है? प्रत्येक नर-नारी का यह कर्तव्य बनता है कि वह इस देश और समाज को एक सच्चा इंसान दे। अगर हम यह प्रण कर ले कि हमें स्वयं के रूप में और अपने बच्चों के रूप में इस समाज को एक अच्छा और सच्चा नागरिक प्रदान करना है तो इससे बड़ी जिम्मेद्दारी और क्या होगी?

और पी.सी.गोदियाल जी अंधड़ ! हालत बता रयेले हैं बेचारा ! की

अरे सर्किट इसकी खबर तो आज मैने स्बी अखबारों मे देखेली है..ये वोईच है क्या..

हां भाई ये बिल्कुल वोईच है…अब आगे…रंजना जी संवेदना संसार पर स्मृति कोष से.. से बोल रयेली हैं…


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यह था मंच का मेरा पहला अनुभव, जिसे मैं इसलिए नहीं विस्मृत कर पाई हूँ कि एक पूरी गीत न जान और गा पाने के अपने अक्षमता के कारण मुझे कितनी ग्लानि हुई थी और मेरे माता पिता इसलिए नहीं विस्मृत कर पाए हैं कि उनकी बेटी ने चार वर्ष के अल्पवय में मंच पर निर्भीकता से कला प्रदर्शित कर उनका नाम और मान बढ़ाते हुए प्रथम पुरस्कार जीता था.यूँ मैं आज तक निर्णित न कर पाई हूँ कि मुझे वह प्रथम पुरस्कार क्यों मिला था...

और भाई अब पढने का बी एस पाबला जी  प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा मे बता रयेले हैं..जनसत्ता में 'जोग लिखी के बारे में…और भाई उदर रामप्यारी ने ताऊजी डॉट कॉम पर एक सांप और नेवला पकड कर फ़िर मजमा लगा लियेला है..और विजेता बन गयेले हैं फ़र्रुखाबादी विजेता (150) : मुरारी पारीक

और भाई इसके बाद वकील साहब आगयेले हैं तीसरा खंबा पर मेयर न्यायालय और सपरिषद गवर्नर के बीच आपसी विवाद और टकराव : भारत में विधि का इतिहास-24 लेकर…फ़िर अनिल कान्त :  मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति  पर ज़िक्र (एक प्रेम कहानी) पढवा रयेले हैं…फ़िर गगन शर्माजी Alag sa पर एक सुझाव दे रयेले हैं..मेरा एक सुझाव है, सोच कर देखीए.

 

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मेरा एक सुझाव है कि किसी भी दिग्गज ब्लाग पर "गपशप" जैसा कुछ शुरू किया जाय। अब यहां एक से बढ कर एक "पोपुलर" जगहें हैं जहां हर कोई खिंचा चला आता है। इनमें किसी पर भी ऐसा कुछ शुरु किया जाय जिसमें हर ब्लागर अपने क्षेत्र की कोई भी जानकारी, कोई घटना, कोई नयी खबर, कुछ अनोखा यदि हो तो सबके साथ बांटे। और उसकी प्रतिक्रिया भी तुरंत उपलब्ध हो सके। जैसा कि अभी ताऊजी के फर्रुखाबादी खेल में सब बढ-चढ कर भाग लेते हैं, पहेलियों के अलावा भी नोक-झोंक में। उसी तरह दुनिया-जहान की बातें एक ही जगह हो जायें। कहने को तो हर ब्लाग ऐसी ही जानकारी रखता है, पर वहां संजीदगी पीछा नहीं छोड़े रहती। अब इसकी तुलना किसी "ट्वीटर या फेसबुक" से ना कर एक अलग रूप का खिलंदड़ा ब्लाग बन जाये तो कैसा रहे? जिसमे तरह-तरह की जानकारियाँ उपलब्ध हों।
इसके लिये भी मेरी ताऊजी से ही गुजारिश है कि वह एक नया ब्लाग शुरू करें। उनकी चौपाल से ज्यादा मुफीद जगह और कौन सी हो सकती है। यदि ऐसा हो तो चौपाल पर हुक्का गुड़गुड़ाने का समय थोड़ा देर से रखा जाय।

और भाई ये सुझाव ताऊ ने मान बी लियेला है और लगता है फ़िर जल्दीई ही कुछ होयेंगा भाई.  मीनू खरे जी उल्लास: मीनू खरे का ब्लॉग पर इन्सिग्नीफिकेंट  पढवा रयेली हैं…

 

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दोस्ती
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दोस्त
इन्सिग्नीफिकेंट
मौक़े
सिग्नीफिकेंट
परिणाम
सिग्नीफिकेंट.

रविंद्र प्रभात जी  परिकल्पना  पर वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-21) पढिये इन नौरत्नों के बारे में…


मेरा फोटो

परिकल्पना से भावनाओं के साथ जुड़े कुछ चिट्ठाकारों की जिज्ञासा थी कि क्या वर्ष के नवरत्न और नौ देवियों की तरह नौ नए, किन्तु यशश्वी चिट्ठाकार का उल्लेख इस विश्लेषण के अंतर्गत नहीं किया जा सकता है ?काफी सोच- विचार के बाद मैंने इस प्रारूप को लाने का फैसला किया है जो आज आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है ।

महेन्द्र मिश्र  समयचक्र  पर हास्य परिहास्य - छुट्टे बड्डे की फुलझड़ी छुडा रयेले हैं…श्यामल सुमन जी  मनोरमा  पर बोल रयेले हैं उनको अबी बी किसी का इन्तजार है…..अजय कुमार झा जी कुछ भी...कभी भी. बोल रयेले हैं कि  लौटूंगा तो ले के यादों के मेले, और अगली ब्लोग बैठक की घोषणा के साथ….

 

दरअसल ,कल से अपना एक सप्ताह का ग्राम प्रवास प्रस्तावित है । यानि कल की रवानगी है , माता जी की पहली बरसी ही मुख्य काम है जिसके लिए मैं जा रहा हूं । वापसी एक सप्ताह बाद होगी । लेकिन जब भी गांव जाता हूं तो जिस एक काम के लिए मुख्य रूप से यात्रा का संयोग बनता है उसके अलावा बहुत से ऐसे काम भी हो जाते हैं जो दिल को सुकून पहुंचाते हैं ।पहला तो होता है महानगरीय जीवन की भागमभाग से दूर गांव की शांति में जाना ऐसा होता है जैसे सुबह सुबह किसी पहाडी के ऊपर बने किसी सुंदर मंदिर में शांति से आप आंख मूंद के बैठे हों और मन तक शांति ही शांति । अपने लगाए पौधों /पेडों से बातचीत होगी । गांव के पुस्तकालय में रखी किताबों से पूछूंगा कि उन्हें कौन कौन निहारने /पढने आता है ।   

हरकीरत ' हीर’ जी कुछ क्षणिकाएं ......... पढवा रयेली हैं…

 

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शबाब बखेरती तितलियाँ .....
भूमिगत कब्रिस्तान से
अंकुरित तितलियाँ
पौधों की जड़ों से चूस लेती हैं खून
इंसानी सोच का .....
बहुरंगी भाषाओँ से खुशबू बिखेरती हैं
शबाब की इस दाखिली पर
झुक जाता है चेहरा ...
शर्म से .....!!

डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी रायटोक्रेट कुमारेन्द्र पर आत्मविश्वास और साहस की पहचान है ये खिलाड़ी..शाबास के बारे में….

 

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अभी पिछले दिन ताऊजी के खुल्ला खेल फर्रुखावादी को देख रहे थे। समीर भाई के आयोजन में खेले जाने वाले खेल में एक चित्र देखा जिसको एक दूसरे चित्र ने ढाँक रखा था। सवाल जिस चित्र के बारे में पूछा गया था उस चित्र का जितना हिस्सा दिख रहा था उससे साफ जाहिर था कि ये किसी खिलाड़ी का चित्र है और ऐसा खिलाड़ी जो पैर से विकलांग होने के बाद भी लम्बी कूद में भाग ले रहा है। इसके बाद भी कृत्रिम पैर का हिस्सा जिस तरह से दिख रहा था उससे एक प्रकार की शंका भी उत्पन्न हो रही थी। कभी भ्रम होता कि कहीं ऐसा तो नहीं कि लम्बी कूद में भाग लेने वाले खिलाड़ी की आड़ में कुछ और दिख रहा हो?

डॉ महेश सिन्हा जी संस्कृति  पर सुना रयेले हैं.. ताज़ा खबर : उड़न तश्तरी का नियंत्रण केंद्र से संबंध टूटा….राजकुमार ग्वालानी  राजतन्त्र… बोल रयेले हैं लखपति ही लड़ सकते हैं पार्षद चुनाव  वकील साहब अनवरत पर यौनिक गाली का अदालती मामला के बारे मे बता रयेले हैं…गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल'  जबलपुर-ब्रिगेड पर ब्रिगेड के एक नियमित पाठक कवि बसंत मिश्र जी से मिलवा रयेले हैं……..खुशदीप सहगल  देशनामा  पर क्या आप टीना फैक्टर जानते हैं...खुशदीप 


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आज ब्लॉग के ज़रिए मैं एक संवाद शुरू करना चाहता हूं...पूरी ब्ल़ॉगर बिरादरी से मेरा आग्रह है इस संवाद में खुल कर अपने विचार रखें...मंथन होगा तो शायद हम विष को अलग कर अमृतपान की दिशा में आगे बढ़ सकें...मैं कोशिश करूंगा कि एक-एक करके ऐसे मुद्दे उठाऊं जो मेरे, आपके, हम सबके जीवन पर प्रभाव डालते हैं, समाज का चाल और चरित्र तय करते हैं...इस कड़ी में सबसे पहले बातराजनीति की...

रस्तोगी जी सूर्यपुत्र महारथी दानवीर कर्ण की अद्भुत जीवन गाथा “मृत्युंजय” शिवाजी सावन्त का कालजयी उपन्यास से कुछ अंश – ३४ [कर्ण की अपने गुरु के प्रति श्रद्धा…..]  पढवा रयेले हैं…कवि योगेन्द्र मौदगिल  कविता पढवा रयेले हैं उर्वशी के नाम पर..... 

 

'अदा' जी काव्य मंजूषा पर जन जन के धूमिल प्राणों में...मंगल दीप जले..!! मे कह रही हैं…

मैं अपने सभी मित्रों से, पाठकों से और मेरे अपनों से एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ...
मैं किसी भी 'वाद' के पक्ष में नहीं हूँ...'जियो और जीने दो' जैसी बात का ही समर्थन करती हूँ...

इसी भावना को सामने रखते हुए मेरी यह कविता समर्पित है....आपको..आपको...और आपको भी...
स्वीकार कीजिये ...!!!!

 

जन जन के धूमिल प्राणों में
मंगल दीप जले
तन का मंगल,मन का मंगल
विकल प्राण जीवन का मंगल
आकुल जन-तन के अंतर में
जीवन ज्योत जले
मंगल दीप जले
विष का पंक ह्रदय से धो ले
मानव पहले मानव हो ले
दर्प की छाया मानवता को
और व्यर्थ छले
मंगल दीप जले

 

मैं आदित्य

आदित्य (Aaditya) बता रयेला है..जू जू मेरी नई पसंद...  इन दिनों कार्टून से लगाव हो गया है.. और कार्टून नेटवर्क पर टॉम और जैरी भी पसंद आने लगे है..  कभी टीवी चलवाकर भी कार्टून देखे जाते है..  ये कार्टून देखते देखते बीच बीच में आने वाले जू जू से कुछ ज्यादा ही प्यार हो गया..  और ये बेकरारी ऐसी बढ़ी की मुख्य कार्यक्रम भी बेकार लगाने लगा और नॉन स्टॉप जू जू की डिमांड होने लगी..  हमेशा आने वाले ये विज्ञापन पता नहीं क्यों नहीं आ रहे थे.. और मेरी बेकरारी बढाती ही जा रही थी.. इन्तजार और बेकरारी देखीये इस वीडियो में.

 

 

अरविंद मिश्राजी  साईब्लाग [sciblog] पर अवतार के बहाने विज्ञान गल्प पर एक छोटी सी चर्चा ! कर रयेले हैं….


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विज्ञानं गल्प फिल्म अवतार इन दिनों पूरी दुनिया में धूम मचा रही है ! फ़िल्म भविष्य  में अमेरिकी सेना द्वारा सूदूर पैन्डोरा ग्रह से एक बेशकीमती खनिज लाने के प्रयासों के बारे में है ! पूरी समीक्षा यहाँ पर है ! अमेरिका में अब यह बहस छिड़ गयी है कि यह फ़िल्म विज्ञान गल्प (साईंस फिक्शन या फैंटेसी )है भी या नहीं.मेरी राय में यह एक खूबसूरत विज्ञान फंतासी ही है और अद्भुत तरीके से हिन्दू मिथकों के कुछ विचारों और कल्पित दृश्यों से साम्य बनाती है!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून   चूटीला कार्टून दिखा रयेले हैं कार्टून:- 'नज़र रक्षा जंतर' वालों की जमात……पंकज सुबीर  सुबीर संवाद सेवा….तरही मुशायरे को लेकर कुछ लोगों की ग़ज़लें मिल चुकी हैं क्रिसमस से प्रारंभ करने की इच्‍छा है । आज जानिये ये कि कैसे बनती हैं ग़ज़लें, उसके मूल तत्‍व क्‍या होते हैं ।….स्वामी ललितानंद महाराज  श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी पर प्रवचन दे रयेले हैं…अन्तर सोहिल = Inner Beautiful बोल रयेले हैं…बात अब तक बनी हुई है…हिमांशु भाई सच्चा शरणम् पर अधूरी कविता ..

 


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दौड़ो !
आओ !
बटोर लो !
मेरे अन्तर में
गहुआ कर फूल उठा है पारिजात-वन,

और विनीता यशस्वी जी यशस्वी पर मेरी दिल्ली यात्रा – 3 का यात्रा वृतांत सुना रयेली हैं..

 

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इसके बाद अगली मंज़िल थी इंडिया गेट। इंडिया गेट में द्वितीय विश्व युद्ध और द्वितीय अफगान युद्ध में शहीद हुए शहीदों के नाम लिखे गये हैं और इसे उनकी याद में ही बनाया गया था। इंडिया गेट में सन् 1971 से एक ज्योति हर समय जलती रहती है जिसे `अमर जवान ज्योति´ कहते हैं। इंडिया गेट में हमने ज्यादा समय नहीं बिताया बस इसे देखा कुछ देर अमर जवान ज्योति के सामने खड़े रहे। कुछ तस्वीरें ली और आ गये। आजकल इस स्थान में भी काफी भीड़ थी।

रंजना [रंजू भाटिया]  कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **   पर  लफ्ज़ ,कुछ कहे -कुछ अनकहे ("क्षणिकाएँ..")


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साथ
जब मैं उसके साथ नही होती
तो वह मुझे
हर श्ये में तलाश करता है
पहरों सोचता है मेरे बारे में
और मिलने की आस करता है
पर जब मैं मिलती हूँ उस से
तो वह तब भी कुछ
खोया सा उदास सा
न जाने क्यों रहता है !!

और अब आखिर मे ललित शर्मा जी शिल्पकार के मुख से पर व्याकुल हो रयेले हैं मैं तब व्याकुल हो जाता हूँ!!! और व्याकुल जी की रचना पढवा रयेले हैं..

 

कवि प्रकाशवीर "व्याकुल" जी अपनी व्याकुलताओं का कारण बताते हुए क्या कहते हैं, ये मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.

दुर्भाग्य  देश  का उस दिन था बैठी जहाँ सभा सारी.

बैठे   थे  अंधे  धृतराष्ट्र   बैठे   थे  भीष्म   ब्रम्हचारी 

बैठे     द्रोणाचार्य       गुरु    बैठे    कौरव   नर-नारी 

और   सिंहासन  पर बैठा था वो दुर्योधन अत्याचारी 

बैठे थे कृष्ण भगवान वहीं प्रस्ताव संधि का सुना दिया 

मांगे  थे  केवल  पॉँच  गांव  पांडव  को इतना दबा दिया

हर तरह नीच को समझाया परिणाम युद्ध का जता दिया

उसने   सुई  की   नोक  बराबर  भी भूमि को मना किया 

इन  इतिहास  के  पन्नों  की मैं जब-जब खोज लगाता हूँ

मैं तब व्याकुल हो जाता हूँ.

 

भाई अब मैं जा रियेला हूं…क्या?  अबी मेरे कू ठनठन गोपाल भाई से शाम कू मिलने जाने का है…आप अबी खा के..पी के..आराम करने का भाई…सर्किट भाई अबी निकल गयेला है….सलाम नाम्स्ते..सब बहन भाई लोग कूं…

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