गैस पेपर--शब्दचित्र--धीमा जहर--ये कैसा डर--(ब्लाग चर्चा)------ललित शर्मा

सर्किट बहुत दिन से बिना बताए गायब  है--मुन्ना भाई उसको ढुंढते हुए हमारे तक पहुंच गए--कहने लगे सर्किट कहीं दिखे तो बताना और आज की चर्चा आप कर दिजिए, तो हमने भी उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। जो समय पर काम आवे वही सच्चा मित्र होता है। तुलसी दास जी ने भी कहा है धीरज धरम मीत अरु नारि-आपत काल बिचारिए चारि-- इसी भाव को लेकर मै ललित शर्मा आपको ले चलता हुँ आज की चर्चा पर..............
आज की चर्चा का आगाज करते हैं मिसफ़िट से गिरीश बिल्लौरे जी जबलपुरिया की पोस्ट से--- उनका कहना है कि कुपोषण कोई बिमारी नही, बिमारी का भेजा गया नि्मंत्रण है--- जी हाँ एक अखबार में प्रकाशित  समाचार में  शिशु उत्तर जीविता के मसले पर सरकार द्वारा उत्तरदायित्व पालकों का नियत करना अखबार की नज़र में गलत है. इस सत्य को   अखबार चाहे जिस अंदाज़ में पेश करे  यह उनके संवाद-प्रेषक की निजी समझ है तथा यह उनका अधिकार है......! .  किन्तु यह सही है  कि अधिकाँश भारतीय ग्रामीणजन/मलिन-बस्तियों के निवासी  लोग महिलाओं के प्रजनन पूर्व  स्वास्थ्य की देखभाल और बाल पोषण के मामलों में अधिकतर उपेक्षा का भाव रखते हैं . शायद लोग इस मुगालते में हैं कि सरकार उनके बच्चे की देखभाल के लिए  एक एक हाउस कीपर भी दे ...?
चलते हैं अगली पोस्ट पर--आज ताऊ डॉट इन पर पढिए-- एक कविता रिश्ते----पता नही आजकल रिश्ते इतने नाजुक क्यों होगये हैं? और आभासी रिश्ते तो वाकई पल पल इधर उधर बिखरते नजर आते हैं. कभी कभी तो इस पत्थर की फ़र्श पर लिखे शब्दों की तरह नजर आने लगते हैं. अक्सर सोचता हूं कि क्या यही रिश्ते हैं?
काव्य मंजुषा पर अदा जी कह रही हैं--इतना तन्हा कितना तन्हा होगा अब और इस दिल का क्या होगा,इतना तन्हाँ है, कितना तन्हाँ होगा,सारे के सारे अक्स मुझे फ़रेब लगे,कोई चेहरा तो कहीं सच्चा होगा,मुझे सच का आईना दिखाने वाले,शायद तेरी आँखों का धोखा होगा, ---गुनगुनाती धुप पर अल्पना वर्मा जी से सुनिए-- वो इश्क जो हमसे रुठ गया
श्री तन सिंह जी के ब्लाग पे पढिए-- चेतक की समाधि से 3---" एक दिन संवत १६३३ के जेष्ट सुदी २ , तारीख ३० मई १५७६ बुधवार के प्रभात काल में उनके शिविर में मंद स्वर में कुछ मंत्रणा सी हो रही थी | एक स्त्री -कंठ याचना भरे शब्दों में अनुनय कर रही थी - " मैं नाचना चाहती हूँ , जी भर कर नाचना चाहती हूँ | बहुत समय बीत गया है , एक बार तो कम से कम तुम भी मुझे नचाओ |" उत्तर में उन्होंने कहा - " मैं ताल दूंगा और तुम नाचना | " मुझे उन पर कभी संशय नहीं हुआ , किन्तु उपरोक्त मंत्रणा के सम्बन्ध में जिज्ञासा बनी रही | प्रभात काल में वे बाहर आये और मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा - " मैंने रणचंडी को नाचने का वायदा किया है - कैसा 'क साथ दोगे ?" और मुझे समझ आ गया , कि उगने वाला सूर्य क्या देखेगा |
अवधिया जी बता रहे हैं धान के देश से टॉप ब्लागर का रहस्य-वो क्या है टिप्पण्यानन्द जी, हमारी सफलता के पीछे कई बातें हैं। पहली बात तो यह है कि आपको पोस्ट निकालना आना चाहिये। पोस्ट किसी भी चीज से निकाला जा सकता है। जैसे नदी में तरबूज-खरबूज आदि की खेती हो रही है तो उस पर पोस्ट निकाल लो। आपके घर के पास कुतिया ने पिल्ले दिये हैं तो झटपट उन पिल्लों के फोटो ले लीजिये और एक पोस्ट निकाल कर चेप दीजिये उन फोटुओं को। यात्रा के दौरान आपका सूटकेस चोरी हो गया तो उससे भी पोस्ट निकाला जा सकता है। आपको रास्ते में कोई विक्षिप्त दिख गया तो उससे एक पोस्ट निकाल लीजिये। जब लोगों को किसी भी ग्राफिक्स में अल्लाह नजर आ जाता है, सिगरेट के धुएँ में चाँद-सितारे आदि दिख जाते हैं तो किसी भी चीज से पोस्ट क्यों नहीं निकाला जा सकता? हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि पोस्ट कहीं से भी निकल सकता है।
शब्दचित्र कलाकृति है--उड़न तश्तरी पर बता रहे हैं समीर लाल जी--कहते हैं शब्दचित्र कलाकृति हैं, हृदय में उठते भावों के रंग से कलम की कूचि से कागज पर चित्रित.कवि, शब्दों को चुनता है, सजाता है, संवारता है और उन्हें एक अनुशासन देता है कि शब्द अपने वही मायने संप्रषित करें जिनकी उनसे अपेक्षा है.हर शब्द नपा तुला, रचना को संतुलित रखता और अन्य शब्दों के साथ मिल कर, अपनी गरिमा को बरकरार रखते हुए, पूरी रचना को एक आकृति प्रदान करता. काव्य सृजन एक कला है और कवि एक कलाकार.
शब्दों का सफ़र चल रहा है बता रहे हैं अजीत वडनेरकर--तुफ़ाने-हमदम और बंवड़ा बंवड़ी--- तुफान हिन्दी का आम शब्द है। तेज हवा या चक्रवात के लिए इसका इस्तेमाल होता है। पारिभाषिक रूप में समुद्री सतह पर तेज बारिश के साथ चलनेवाले तेज अंधड़ को तूफान कहते हैं मगर हिन्दी में इस शब्द का साधारणीकरण और सरलीकरण दोनो हुआ है। तूफान शब्द का इस्तेमाल अब जमीन की सतह से उठने वाली धूल भरी आंधी के लिए भी होता है। तेज हवा और वर्षा का वेगवान स्वरूप सब कुछ तहस नहस कर देता है इसलिए मुहावरे के रूप में तूफान शब्द का अर्थ विपत्ति, आफ़त, गुलगपाड़ा, बखेड़ा, झगड़ा, विप्लव आदि भी है। शोर-गुल, हल्ला-गुल्ला के लिए भी तूफान शब्द का इस्तेमाल होता है और झूठे दोषारोपण से मचे बवाल को भी तूफान कहा जाता है।
अमीर धरती गरीब लोग पर अनिल पुसदकर जी बचपन के स्कुल की दिनों की याद कर रहे हैं, सीजन परीक्षा का, गैस पेपर और खुबसूरत यादें----एक दिन अचानक़ एक स्कूटर आकर रुका और उसपर सवार दो युवतियों मे से एक ने पूछा कि दिलीप जी से मिलना है?जो स्कूटर चला रही थी वो तो बेहद साधारण थी लेकिन पीछे जो बैठी थी वो बला कि खूबसुरत थी।उस सूखे-तपते रेगिस्तान मे दोनो का आ जाना अमृत की बूंदो के समान सुखदायी था।दोनो अचानक़ सामने आ गई थी इसलिये प्लानिंग करके कुछ किये जाने की स्थिति मे ह लोग नही थे और इससे पहले कोई कुछ कहता मैने उन्हे रूखा सा जवाब दे दिया दिलीप नही आया है?कब आयेगा के सवाल का जवाब और भी रूखा था,पता नही!
मा पलायनम! पर डॉ मनोज मिश्र जी बता रहे है---राजा रामचंद्र जी और उनके पाँच हजार सैनिक--- पिछले दिनों मैं अयोध्या में था और अपने प्रवास की बात कर रहा था .श्री राम जन्मभूमि परिसर में सुरक्षा के लिए लगभग पांच हजार जवान लगे हैं.श्री राम लला के दर्शन के दौरान मैंने अपनें साथ गये एक पत्रकार मित्र से कहा कि वाह ,क्या चाक-चौबंद व्यवस्था है,वाकई यहाँ तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता.मेरे पत्रकार मित्र नें कहा कि कि अब राजा केलिए इतने सेवक-सैनिक तो रहेंगे ही.उनके कहने का अंदाज़ ऐसा था कि मुझे हंसी आ गयी .मैंने उनसे कहा कि यह आप क्या कह रहे हैं .उन्होंने कहा मैं सही कह रहा हूँ यहाँ सब के सब श्री राम लला की सेवा में ही तो है,अब राजा हैं तो सेवक होने चाहिए न.बिना सेवक के कैसा राजा।
ममता टीवी पर ममता जी पुछ रही हैं--ये कैसा डर मु्लायम सिंह को?-- शायद आप लोगों ने भी पढ़ा होगा की समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह को ये डर है की महिला आरक्षण देश को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है । यही नहीं मुलायम सिंह का तो ये तक सोचना है की महिला आरक्षण के कुछ साल बाद संसद सिर्फ महिला सांसदों की होगी ।अभी मुलायम सिंह को काफी चिंता हो रही है की ३३ प्रतिशत आरक्षण के बाद संसद मे महिलाओं की संख्या हर चुनाव के बाद बढती जायेगी। और तो और उनका ये तक सोचना है कि देश का भविष्य क्या होगा जब देश inexperienced महिलाओं के हाथ मे होगा ।और अनुभव तो तभी होगा ना जब वो संसद तक पहुंचेंगी
खुशदीप सहगल कह रहे है-- दम ले ले घड़ी भर ये आराम कहां पाएगा---हम देर से उठते हैं...अपने बच्चों के साथ खेलते हैं...पत्नियों के साथ बढ़िया खाना बना कर खाते हैं, शाम को हम दोस्त-यार मिलते हैं...साथ जाम टकराते हैं...गिटार बजाते हैं...गाने गाते हैं...मौज उड़ाते हैं..फिर थक कर सो जाते हैं...या यूं कहें ज़िंदगी का पूरा आनंद लेते हैं... मैं हावर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए हूं...मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं...मेरी सलाह है कि तुम मछलियां पकड़ने में ज़्यादा वक्त लगाया करो...और जितनी ज़्यादा मछलियां पकड़ोगे, उन्हे बेचकर ज़्यादा पैसे कमा सकते हो...फिर उसी पैसे को बचाकर  बड़ी नौका खरीद सकते हो...
मिलिए प्रख्यात चित्रकार श्री डीडी सोनी से एक साक्षात्कार मे ललित डॉट कॉम पर ---- मित्रों आज मै आपका परिचय भारत के प्रसिद्ध चित्रकार एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व डॉ.डी.डी. सोनी जी करवा रहा हुँ। इन्होने चित्रकला के क्षेत्र मे नए सोपान गढे हैं तथा अपनी जीवन यात्रा मे काफ़ी संघंर्ष किया है। परम्परागत रुप से की जाने वाली चित्रकारी से लेकर आधुनिक चित्रकला के क्षेत्र मे इन्होने हाथ आजमाया तथा सफ़लता भी मि्ली। आज इनकी पेंटिग लाखों में बिकती है। इनसे बहुत सारे नए चित्रकार चित्रकला की बारीकियाँ सीखने आते हैं, उन्हे सहज भाव से समझाते हैं। इन्होंने बहुत सारी विधाओं पर काम किया है जैसे लैंड स्केप, पोट्रेट, लाईव, मार्डन पेंटिग,मिनिएचर, ड्राईंग प्रोसेस, पैचवर्क, नाईफ़ पैंटिग इत्यादि।
किशोर अजवानी बता रहे हैं श्री श्री रविंशंकर से मिलना है --एक्चुअली तो लेट हो गया अब लेकिन फिर भी अगर आपके ज़ेहन में श्री श्री रविशंकर के लिए कोई सवाल हो तो सुबह तक मुझे बता दें, कल दोपहर बारह बजे इंटरव्यू है उनका लाइव। हो सका तो आपका सवाल ज़रूर लूंगा। मतलब वो विविध भारती की तरह तो न ले पाऊंगा कि फ़लां फ़लां का फ़लां जगह से ये सवाल है। अजय झा जी- ले आए हैं आज का मुद्दा--गुटका पान मसाला एक धीमा जहर--आज से एक दशक पहले तक आम लोगों ने यदि किसी पान मसाले के बारे में देखा सुना था या कि उपयोग किया करते थे तो वो शायद पान पराग और रजनीगंधा हुआ करता था । उसकी कीमत उन दिनों भी आम पान मसाले या सुपाडी से कुछ ज्यादा हुआ करती थी ।
आज अनिता कुमार जी का जन्म दिन है--उन्हे बधाई देने के लिए यहां जाएं

अब चर्चा को देते हैं विराम-आपको ललित शर्मा का राम-राम----मिलते हैं ब्रेक के बाद

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बकवास मत कर सार्थक लिख ताजगी और बदलाव के लिये : चर्चाकार (ललित शर्मा)


आज मुन्ना भाई ने सर्किट को भेज दिया और कहा कि ललित शर्मा को कह दो एक चर्चा हमारे ब्लाग पर भी होनी चाहिए, बताईये अब मरता क्या ना करता चलो रे भाई मुन्ना भाई का आदेश है मनाना ही पड़ेगा, पानी में रहके .......ठीक नहीं है, एक समाचार बता रहा हुई कि रायपुर कलेक्ट्रेट के कुत्तों से निगम कर्मचारी भयभीत हैं और उन्होंने कुत्तों से सेटिंग कर ली है. इसका पता तब चला मेयर मेडम ने उन्हें पकड़ने के लिए कहा. सख्त निर्देश पर भी कुत्ते नहीं पकडे गए. मेडम के असिस्टेंट को कुत्ते ने काट डाला तब मेडम ने कहा कि आस पास में कुत्ते नहीं अब नहीं दिखेंगे. अब जब भी मेडम के असिस्टेंट कलेक्ट्रेट जाते हैं तो उनको मुंह चिढाते हुए कुत्ते अठखेलियाँ करते है और लोग  पूछते हैं "क्या हुआ कुत्तों का? ये तो था एक समाचार अब मैं ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज की चर्चा पर............
आज गिरिजेश राव जी फिर स्कुल जा रहे हैं और सब सहपाठियों से निवेदन कर रहे हैं कि स्कूल चले हम.भैया कालेज में कोई पढाई थोड़ी ना होती है पढ़ना है तो स्कुल जाना ही पड़ेगा और जो मजा स्कुल की पढाई में है वो कालेज की पढाई में कहाँ? हम सोच रहे हैं कि दो बार पांचवी पढ़ लेंगे तो १० क्लास की पढाई तो हो ही जाएगी अब किसी के पूछने पर नान मैट्रिक की डिग्री नहीं बतानी पढेगी सीधा ही मेट्रिक बताएँगे. इस लिए हम भी चलते हैं अब स्कुल. गिरिजेश भाई स्कुल पहुँच कर क्या कह रहे है देखिये."मैडम को सफेद अच्छा लगता है।"
अब आगे चलते हैं तो कुलवंत हैप्पी गुमशुदा की तलाश में निकल पड़े हैं लेकिन जिस चीज की तलाश में निकले हैं वह चीज बिना वैराग के नहीं मिलती चलो किसी दिन इस मायावी दुनिया से थक जायेंगे तो वैराग आ ही जाएगा और  अभीष्ट की प्राप्ति हो जाएगी, अब एक तरफ वैराग है तो दूसरी तरफ फागुनी विरह प्रकट हो रहा है.रानी विशाल जी फरमा रही है कि ना आये विरह की रैन.. तुम बिन सब सुख दुःख भये, ना पाए मन कहीं चैनप्राण जाए तो जाए पर, ना आए विरह की रैन, ये विरह ही ऐसी चीज है जो बहुत दुःख देती है
चलते हैं ३६ गढ़ की ओर जहाँ से महुए की भीनी भीनी,सोंधी-सोंधी खुशबु आ रही है और  शिल्पकार कह रहे हैं गजब कहर बरपा है महुए के मद का भाई.....यही समय जब महुआ के रस भरे फ़ूल जब धरती पर गिरते हैं तो इनकी खुशबु से पूरा वातावरण महक जाता है एक मादकता छा जाती है. फागुन आने का सन्देश सब तक पहुँच जाता है, हम भी महुआ के रस में तर हो गए हैं. आप भी कुछ तर होइए और फागुन का मजा लीजिये होरियारों के संग. इधर भी कुछ फागुन का ही माहौल बना हुया है,अब क्या कहिये काजल भाई पूछ रहे हैं कि सच बताना यह बस आपने कहीं देखी है. काजल भाई दिन भर हम मिथ्या व्यापर करते हैं और झूठ से फुर्सत मिलेगी तो कसम से सच भी कह देंगे आपकी बात जरुर रखेंगे काटेंगे नहीं.इतना वादा रहा हमारा.
ताऊ ने फिर पूछी है एक पहेली और उसका हिंट भी दे दिया है अब राम ही जाने कौन बनेगा विजता? इधर सतीश सक्सेना जी ताऊ की पोल खोलने में लगे हैं उनके सारे प्रोडक्ट को नकली बता रहे हैं लेकिन  मुझे समझ में नहीं आया कि जब सारे प्रोडक्ट नकली हैं तो क्रीम से समीर लाल कैसे गोरे हो गये? वैसे क्रीम तो चमत्कारी लगती है.बाकी सतीश जी बता रहे हैं.आप भी लीजिए आनंद.समीर लाल गोरे होए हैं और अवधिया जी लाल हो गए हैं. अब ये कैसे हो गया कौन सी क्रीम लगायी, क्रीम नहीं लगाई ये तो देखने से ही लाल हो गये, लाली मेरे लाल की जीत देखो उत लाल, लाली देखन मैं गई और मै भी हो गयी लाल, आज इन पर लालित्य छा गया है होली का,बहुत लाल-बाल हो गये हैं.
दिल्ली में चलना अब दिल्लगी नहीं रह गया है, इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता, अविनाश जी पहले पप्पू के साथ गाड़ियों की बहुत सवारी करते थे.लेकिन अब गर्दी देख के उनका भी मन सायकिल खरीदने की बजाय रिक्शा खरीदने का हो गया है. क्योंकि सायकिल पे तो दो लोग ही मुस्किल से बैठ सकते हैं और रिक्शे पर कई ओवरलोड होने से चालान का भी खतरा नहीं है, इधर एक खतरा टला नहीं की अनिल पांडे जी एक खतरा उठा रहे हैं और एक व्यथा बतला रहे हैं,अंतर सोहिल जी ने तो नामरूप अंतर जगा दिया, मुझे तो इनका नाम सामने आते ही अपूर्व आनंदाभुति होती है  जैसे भीषण गर्मी में किसी नीम के ठन्डे पेड की छाया, आज इन्होने चेताया  है कि बकवास मत कर, सार्थक लिख, अब आप सोच लीजिये क्या करना है?
परिकल्पना पर फगुनाहट की गुनगुनाहट है. आज अनुराग शर्मा जी की कविता प्रकाशित की गयी है. बहुत ही सुन्दर कविता है, बोल सियापति राजा रामचंद्र की जय, पवन सूत हनुमान की जय. अब हनुमान जी लंका में अशोक वाटिका में पहुँच गए हैं. लंका का दहन होगा. अवधिया जी की रामायण का प्रसंग है. संगीता पूरी जी ने अंधविश्वास के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और डटी हुयी हैं एक सैनिक की तरह मोर्चा लेने के लिए, रेखा श्रीवास्तव जी नारी का संबल बढा रही हैं और उन्हें कह रही है कि निर्बल मत बनो कर्म करो कुछ ऐसे कि सबल हो जाओ,
अरे भैया ये फकीरा भी कभी कभी गजब के रोल करते है. होली आई नहीं है और हाथ में दारू की बोतल लेकर शराबी का रोल कर रहे है. इधर परीक्षा सर पर आई है और  गोदियाल जी  वाह जी खुशवंत सिंग जी कह कर उन्हें शाबासी दे रहे हैं. मनोज जी बहुत ही मेहनत करते हैं. जब से इन्होने होली के कुछ चिट्ठों की चर्चा की है तब से ये भी होलिया गए है और कह रहे है होली आई रे
आज उडन तश्तरी रेस्ट पर है तो अदा जी उड़ान  पर हैं काव्य मञ्जूषा पर बहुत ही सुन्दर भाव भरी कविता है तथा ऊ छाता वाला फोटू भी बहुत सुन्दर लगा है कविता के साथ. इधर अजय झा कह रहे हैं तेरे बिना जी नहीं लगता, झा जी अगर हमारे लिए कह रहे हैं तो जल्दी ही मिलन होगा जब हिया मिलेगा तो जीया भी लगेगा.  सुबीर संवाद सेवा पे पढ़िए नजीर अकबराबादी का पूरा गीत "जब फागुनी रंग झमकते हों" फागुन का आनंद लीजिये डॉ.मनोज  मिश्र जी भी आज हमारे साथ महुआ के फेरा में पड़ गए हम तो महुआ-महुआ हुए, उनका भी मन होने लगा महुआ-महुआ, महुवे की खुशबु ही कुछ ऐसी है कि दीवाना बना देती है.
भैया अब इतना पढ़ने के बाद खुशदीप भाई मुस्कुराने कह रहे हैं जबकि हम चाहते हैं कि कविता का इनाम मिल जाये तो मुस्कुराएँ, क्योंकि जब से अनारकली कहीं चली गयी है हम मुस्कुराना ही भूल गए हैं. ताजगी और बदलाव के लिए  अब मै खुद को ही प्यार करने लगा, और चाहता हूँ कि इस थकान भरे दिन के बाद कोई थपकियाँ देकर सुला दे, प्रकृति का क्रूर प्रहार सही बहुत याद आओगे निर्मल तुम. आज फिर मेहनत से चिट्ठों के मोती पिरोकर एक माला बनायीं है. पसंद आये तो मुक्त कंठ से आशीर्वाद दीजिएगा. अब दे रहा हूँ इस चर्चा को विराम-सभी भाई-बहनों को ललित शर्मा का राम-राम........................!
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गधे ब्लागिंग क्युं करते हैं? संतू गधा पूछ रयेला है आपसे!

सर्किट भाई आप सबकू सलाम नमस्ते कर रयेला है….और आगे की चर्चा सुना रयेला है. मुन्ना भाई अबी तो सो रयेले हैं..अपुन का नींद उखड गयेला तो मैं ये चर्चा बांचने कू लग गयेला है…आप बी सुनने का अगरबत्ती लगाके…आप लोग  अगरबत्ती लगाके चर्चा सुनेगा तो आप की पोस्ट हिट होयेंगी..तो अबी अगरबत्ती लगाने का और चर्चा सुनने का…

 

मेरी दुनिया मेरे सपने पर ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ भाई बोल रयेले हैं.. वर्ष 2009 के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर्स हेतु संवाद सम्मान:- 20 श्रेणियाँ, 250 नामांकन। नाम फाइनल करने में 'नाकों चने चबाना', 'पहाड़ चीर कर नहर बनाना', 'लोहे के चने चबाना' जैसे सारे मुहावरे सार्थक हो गये। -

 

और झकाझक टाइम्स पर दिल्‍ली ब्‍लॉगर मिलन या मोबाइल मिलन हो रहा है : मजा न आये तो पैसे वापिस (अविनाश वाचस्‍पति) कर रयेले हैं… और पहेली बी पूछ रयेले हैं…

 

हंसते खिलखिलाते ब्लागर…

ये जज्बा कायम रहे….

विचार विमर्श मे मग्न…


मुंह में गुलाब जामुन भरकर
फ़ोन के पीछे मुंह छिपाये…ये कौन? येईच है पहेली….

 

संचिका पर मिथकों का मानव के अवचेतन पर प्रभाव - ५ (अंतिम भाग) पढने का….  मेरी कृति पर राजस्थान का लोक नृत्य की तस्वीरे देख सकते हैं…

 

टिप्पी का टिप्पा टैण टैणेन . कर रहे हईम अजय झा जी…आप टीप के निकल जाते हैं, हम उसे यहां टिकाते हैं….

 

भाई खुशदीप के देशनामा पर

Udan Tashtari said...

मेहमान-ए-खुसुसी :)
राज जी और कविता जी की उपस्थिति ने आयोजन को अन्तर्राष्ट्रीय बना दिया जी.
एक ही साल में यह असर खुशदीप ब्लॉगिंग का की यंगनेस जाती रही..अब समझ में आ रहा है मुझे अपने लिए कि चार साल में मेरी क्या दुर्गति हुई है वरना मियाँ, हम भी जवानों के जवान थे कभी. :)
महफूज़ की शादी तो खैर कई वजहों से जरुरी हो गई है, उसमें यह वजह और आ जुड़ी. अब तो मार्जिन बहुत बारीक बचा है. :)
दराल साहब का हरियाणवी किस्सा जोरदार रहा!
सरवत जमाल साहेब की उपस्थिति उल्लेखनीय रही. हमारे गोरखपुरिया भाई जी हैं.
खाने से ध्यान हटाने की कोशिश में अपना नाम और उल्लेख ठीक खाने के मेनु के बाद देखना कितना सुखद रहा कि क्या बताऊँ..सब आप लोगों का स्नेह है.
सब देख सुन कर आप सही कह रहे हैं हिन्दी ब्लॉगिंग के बढ़ते कदमों को कोई नहीं रोक सकता.
जय हो हिन्दी!! जय हो हिन्दी ब्लॉगिंग!! जय हो हिन्दी ब्लॉगर्स!!

February 8, 2010 11:51 PM

हमारा टिप्पा:-…बिल्कुले ठीक कहे हैं आप कि दुनो जन राज भाटिया जी और कविता जी के आने से हम लोग का मीट इंटरनेशनल लुक मिल गया , बस एक आप जाते तो हम लोग एस्ट्रोनौटिकल मीट कर लेते …..और गजब का शोर मच जाता कि …….इंसानो और एलियन जी ने भी आपस में की ब्लोग्गिंग मीट ।……..ई महफ़ूज़ भाई की शादी और भी बहुत कारण से जरूरी है ……अरे तो हमको समझ में नहीं आता कि ई महफ़ूज़ भाई अपनी लाईफ़ में से ई मोडरेशन काहे नहीं हटाते हैं ?? खाने के मीनू के बाद आपका नाम आया ……….एक दम ठीक आया ….उससे पहले आता तो ……बचता का ………न मीनू….न खाना ? केतना ध्यान रहता है ….भोजन पर । आईये आपके वाले ब्लोग्गर मीट में तो खास तौर से ब्लोग्गर व्रत मीट ( बताईये …व्रत और मीट ..एक साथ राम राम ) रखा जाएगा ॥

 

ताऊजी डॉट कॉम पर खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (191) : आयोजक उडनतश्तरी पूछ रयेले हैं ये पहेली…

 

जवाब देने का….

 

अंधड़ ! पर गोदियाल जी पूछ रयेले हैं…क्या वोट-बैंक सचमुच इतना अक्लमंद है ?

 

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खैर, अपने इन राजनेतावो की तो कहाँ तक तारीफ़ करे, मगर मुझे आश्चर्य उस वोट बैंक पर होता है जिसे ये इस्तेमाल कर रहे है, अपने फायदे के लिए ! क्या वोट-बैंक वाले इतना भी नहीं समझते कि इनका उद्देश्य क्या है ? कल चुनाव हो जायेंगे तो वहाँ भी आन्ध्रा की तर्ज पर कोई कोर्ट आरक्षण को अवैध करार देगा! और ये फिर से कहलायेंगे, बहुसंख्यको द्वारा शोषित लोग ! मगर लाख टके का सवाल यह है कि इन राजनेताओ को इस वोट बैंक को इतना बुद्धिमान समझने का नुख्सा दिया किसने ?

उच्चारण पर "समझो तभी बसन्त!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) पढवा रयेले हैं…

 

मेरा परिचय यहाँ भी है!

जैसे-जैसे आ रहा, प्रेम-दिवस नज़दीक।
गोवा और मुम्बई के, लगे चहकने बीच।।
तोता-तोती पर चढ़ा, प्रेम-दिवस का रंग।
दोनों ही सहला रहे, इक-दूजे के अंग।।

कुछ भी...कभी भी. पर दिल्ली ब्लोग बैठक ( सिलसिलेवार रपट नं ३) झा जी अगली रिपोर्ट जारी कर रयेले हैं….

jhaji

 

इसी बीच फ़ोन पर एकऔर आवाज आई ,,,भाई आपके बताई स्थान के पास पहुंच चुका हूं मगर अबकैसे आऊं । मैंने कहा आप बताईये कहां हैं और कौन हैं मैं फ़ौरन वहां पहुंचता हूं। उन्होंने कहा जाईये जब आप पहचान ही नहीं रहे हैं तो फ़िर आने का क्याफ़ायदा । मैं सकपका गया , मैं आपसे बात तो कर चुका हूं पहले, और आपअपने नंबर से फ़ोन नहीं कर रहे हैं इसलिए पहचान नहीं पा रहा हूं । जाईये फ़िरमैं नहीं आऊंगा । इससे पहले कि मैं और परेशान होता ....एक ठहाका लगाऔर पता चला कि उधर से भाई पंकज मिश्रा जी ब्लोग्गर्स मीट का हालचालऔर बधाई देने के लिए फ़ोनिया रहे थे|

और अब आखिर में ताऊ डाट इन पर ताऊ का गधा संतू आपकी राय मांग रयेला है…संतू गधे को नटखट बच्चे से बचाओ!

 

हां आदरणिय ब्लागर और ब्लागरगणियों, मैं संतू गधा आपको प्रणाम करता हूं और मेरी पीडा आपको सुनाता हूं. और साथ ही ये भी उम्मीद करता हूं कि आप मुझे इस समस्या का सही निदान बतायेंगे.

 

आप यहां उपर जो चित्र देख रहे हैं इसमे एक नटखट बच्चे को मुझे सुई चुभाते हुये आप देख रहे होंगे? यह नटखट बच्चा बहुत समय से मुझे परेशान कर रहा है. यह शरीफ़ बनने का ढोंग करता है. लोगों को कहता है ये अंधा है. जबकि इसने जबरन आंखों पर पट्टी बांध रखी है, लोगो की सहानुभुति पाने के लिये.

 

सूई चुभोने के अलावा यह मेरे गधा सम्मेलन करवाने पर भी उल्टी सीधी बकबास करता रहता है. पता नही इसको गधा सम्मेलनों से चिढ क्यों है? यह जगह जगह रोता फ़िरता है कि गधे ब्लागिंग क्युं करते हैं? मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या गधे प्राणी नही होते? अरे जब मैं अंग्रेजी पढा लिखा हूं तो ब्लागिंग क्युं नही कर सकता? या बच्चे का कापी राईट है ब्लागिंग पर?

अब सर्किट भाई का आप सबकू सलाम नमस्ते….दिन भर खूब काम करने का शाम को मैं ईदरीच मिलेगा….

 

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खाली पिली फिर से आ गया

मुन्ना भाई...मुन्नाभाई आज आप इधर कू ? अरे सर्किट आज क्या है ना अपुन के बिल्डिग में झंडा दिवस मानाएला है. सुबह-सुबह मैंने अपना खिड़की से झाक कर देखा . मेरा हाउसिग सोसायटी का मैदान में कुछ लोग डंडा के ऊपर झंडा बांधने को तैयारी कर रहा था . मै मन में बोला, "अरे फिर आ गया." फिर सोचा खिड़की का पर्दा खींच देता हु ताकि कोई मुझे देख न लेवे. वरना झंडा वन्दन का वास्ते नीचू जाना पडेगा . पर परदा बंद करने में ज़रा सा देर हो गया और मेरे कू देख लिया गया मजबूरी में मेरे को झंडा के पास जाना पडा.


नीचू गया तो सोसायटी का दीवार पर गणतंत्र दिवस बैठा दिखाई दिया. मेरा शक्ल देख वो समझ गया की छुटी का दिन सुबह-सुबह घर से बाहर आना मेरे कू कितना अखर रहा है. उसका चेहरा पर लाचारी भरा मुस्कान झलकने लगा,"क्या करेगा ? डेट फिक्स इच था, आना ही पड़ता है. मजबूरी है. सोरी !" छुटी के दिन उसके कारण लोगो कू घर से बाहर आना पड़ता है. इसका गणतंत्र दिवस को अफ़सोस था. जाहिर है, वो अपना असली गणतंत्र दिवस ईच था. वरना इस देश में जनता का हालत पर सचमुच अफ़सोस करने वाला अब शायद ईच कोई बचेला है.

तो सोसायटी का मैदान में झंडा कू डंडा पर बांधने का तैयारी चल रहेला था . झंडा सोसायटी के चेयरमेन कू फहराना था. बिलकुल दिल्ली वाला स्टाईल में. यानी जबी रस्सी खीचा जावे तो उपर से फुल बरसे. उसका वास्ते सोसायटी का वाचमैन एक-एक फुल का पंखुड़ी अलग कर रहेला था. फिर तोड़ा हुआ फुल को झंडे में लपेटा जाएगा और झंडा का उपर रस्सी का एसा गाँठ बाँध सकता है जो नीचू से खींसो तो उपर से खुल जावे. आखिर में चैयरमैन कू बुलाने वास्ते एक आदमी भेजना पडा . तब करीब दस मिनट बाद वो नीचू को आया. ये हर साल का किस्सा है. हमारा देश में एक गाठ बांधने वाला भी भाव खा सकता है. वक्त जरूरत की बात है, खावे भी कायकू नहीं ? बाद में साल भर उसे पूछने वाला कोई नहीं.

इधर झंडा को गाठ बांधा जा रहा था, उधर झंडा कितना बजे फहराने का, ये बात पर विचार हो रहेला था. बातचीत करने के बाद तय हुआ की दिल्ली में झंडारोहण आठ बजे होगा उसके एक घंटे बाद सोसायटी में झंडा फहराने का.
स्वाभाविक है. आम आदमी का वास्ते आजादी देर से ईच आता है.

झंडा वंदन के वास्ते सोसायटी का सो मेंबर लोग में से सिर्फ चार जनु ही आएला. एक चैयरमैन, दुसरा सैकेटी तीसरा गाठ बांधने वाला और चोथा डंडा खडा कर झंडा बांधने वाला वाचमैन. बाकी सो में से कोई नहीं आया. जैसे तैसे झंडा फहराया गया. गाठ बरोबर खुला, चैयरमैन के ऊपर फुल बरसा जन-गण- मन गाया गया. भारतमाता की जय बोला गया. गणतंत्र दिवस यह सभी गंभीरता से देख रहा था वह कुछ सोच रहेयाला था. पता नही क्या सोच रहा था, पण काई कू सोच रहा था शायद सोच रहा था की अगला साल कू आवे के नाही . कारण वो आया और किसी ने बोल दिया "अरे" ये तो खाली पिली फिर से आ गया तो ?
यग्य शर्मा ,नवभारत टाइम्स

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