खाली पिली फिर से आ गया
मुन्ना भाई...मुन्नाभाई आज आप इधर कू ? अरे सर्किट आज क्या है ना अपुन के बिल्डिग में झंडा दिवस मानाएला है. सुबह-सुबह मैंने अपना खिड़की से झाक कर देखा . मेरा हाउसिग सोसायटी का मैदान में कुछ लोग डंडा के ऊपर झंडा बांधने को तैयारी कर रहा था . मै मन में बोला, "अरे फिर आ गया." फिर सोचा खिड़की का पर्दा खींच देता हु ताकि कोई मुझे देख न लेवे. वरना झंडा वन्दन का वास्ते नीचू जाना पडेगा . पर परदा बंद करने में ज़रा सा देर हो गया और मेरे कू देख लिया गया मजबूरी में मेरे को झंडा के पास जाना पडा.
नीचू गया तो सोसायटी का दीवार पर गणतंत्र दिवस बैठा दिखाई दिया. मेरा शक्ल देख वो समझ गया की छुटी का दिन सुबह-सुबह घर से बाहर आना मेरे कू कितना अखर रहा है. उसका चेहरा पर लाचारी भरा मुस्कान झलकने लगा,"क्या करेगा ? डेट फिक्स इच था, आना ही पड़ता है. मजबूरी है. सोरी !" छुटी के दिन उसके कारण लोगो कू घर से बाहर आना पड़ता है. इसका गणतंत्र दिवस को अफ़सोस था. जाहिर है, वो अपना असली गणतंत्र दिवस ईच था. वरना इस देश में जनता का हालत पर सचमुच अफ़सोस करने वाला अब शायद ईच कोई बचेला है.
तो सोसायटी का मैदान में झंडा कू डंडा पर बांधने का तैयारी चल रहेला था . झंडा सोसायटी के चेयरमेन कू फहराना था. बिलकुल दिल्ली वाला स्टाईल में. यानी जबी रस्सी खीचा जावे तो उपर से फुल बरसे. उसका वास्ते सोसायटी का वाचमैन एक-एक फुल का पंखुड़ी अलग कर रहेला था. फिर तोड़ा हुआ फुल को झंडे में लपेटा जाएगा और झंडा का उपर रस्सी का एसा गाँठ बाँध सकता है जो नीचू से खींसो तो उपर से खुल जावे. आखिर में चैयरमैन कू बुलाने वास्ते एक आदमी भेजना पडा . तब करीब दस मिनट बाद वो नीचू को आया. ये हर साल का किस्सा है. हमारा देश में एक गाठ बांधने वाला भी भाव खा सकता है. वक्त जरूरत की बात है, खावे भी कायकू नहीं ? बाद में साल भर उसे पूछने वाला कोई नहीं.
इधर झंडा को गाठ बांधा जा रहा था, उधर झंडा कितना बजे फहराने का, ये बात पर विचार हो रहेला था. बातचीत करने के बाद तय हुआ की दिल्ली में झंडारोहण आठ बजे होगा उसके एक घंटे बाद सोसायटी में झंडा फहराने का.
स्वाभाविक है. आम आदमी का वास्ते आजादी देर से ईच आता है.
झंडा वंदन के वास्ते सोसायटी का सो मेंबर लोग में से सिर्फ चार जनु ही आएला. एक चैयरमैन, दुसरा सैकेटी तीसरा गाठ बांधने वाला और चोथा डंडा खडा कर झंडा बांधने वाला वाचमैन. बाकी सो में से कोई नहीं आया. जैसे तैसे झंडा फहराया गया. गाठ बरोबर खुला, चैयरमैन के ऊपर फुल बरसा जन-गण- मन गाया गया. भारतमाता की जय बोला गया. गणतंत्र दिवस यह सभी गंभीरता से देख रहा था वह कुछ सोच रहेयाला था. पता नही क्या सोच रहा था, पण काई कू सोच रहा था शायद सोच रहा था की अगला साल कू आवे के नाही . कारण वो आया और किसी ने बोल दिया "अरे" ये तो खाली पिली फिर से आ गया तो ?
यग्य शर्मा ,नवभारत टाइम्स
6 टिप्पणियाँ:
badhiya majboori...
27 जनवरी 2010 को 4:05 am बजेJai Hind...
अच्छा व्यंग्य यज्ञ शर्मा जी का. आभार इसे प्रस्तुत करने का.
27 जनवरी 2010 को 4:28 am बजेबेछुट्टी हो गया गणतंत्र दिवस।
27 जनवरी 2010 को 7:10 am बजेआपकी पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आ गया!
28 जनवरी 2010 को 10:02 am बजेइसे चर्चा मंच में भी स्थान मिला है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/01/blog-post_28.html
बहुत बढिया लिखा आपने....
28 जनवरी 2010 को 5:19 pm बजेलाजवाब्!
शुभकामनायें !
31 जनवरी 2010 को 9:05 am बजेएक टिप्पणी भेजें
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